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________________ समाधान भी दे दिया कि यह संकल्प है, नियाणा ( निदान) नहीं। इस संकल्प द्वारा भावशुद्धि का लक्ष्य है, भव-परम्परा समाप्ति का ही उद्देश्य है, न कि सांसारिक सुख पाने की लालसा है। आचार्य ने, पूजा में हिंसा होती है- ऐसी शंका करने वालों के लिए समाधान दे दिया कि गृहस्थ के लिए जिनपूजा निर्दोष है, क्योंकि गृहस्थ कृषि आदि कई आरम्भ करता है, पूजा के समय वह उस आरम्भ मुक्त होता है। पूजा निवृत्तिरूप फल है, अतः मोक्षाभिलाषी को प्रमादरहित होकर आगम सम्मत विधि द्वारा परमात्मा की अर्चना करना चाहिए। परमात्मा की पूजा करने से परमात्मा को क्या लाभ है? इस शंका का समाधान करते हुए वर्णन किया गया है कि परमात्मा की पूजा से परमात्मा को लाभ हो या न हो, परन्तु पूजा करने वालों को अवश्य लाभ प्राप्त होता है, अर्थात् तीर्थंकर, गणधर चक्रवर्ती आदि उत्तम पदों की प्राप्ति होती है, अतः परमात्मा की पूजा अवश्य करना चाहिए । पंचम पंचाशक पंचम पंचाशक में प्रत्याख्यान के स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। चूंकि प्रत्याख्यान, नियम एवं चारित्रधर्म समानार्थक हैं, फिर भी प्रस्तुत पंचाशक में प्रत्याख्यान का अर्थ कुछ विशिष्ट रूप में किया गया है। यहाँ आत्महित की दृष्टि से प्रतिकूल प्रवृत्ति के परित्याग की मर्यादापूर्वक प्रतिज्ञा करने को प्रत्याख्यान कहा गया है। प्रत्याख्यान के मूलगुण एवं उत्तरगुण- इस प्रकार दो भेद किए गए हैं। इसमें श्रमणवर्ग के महाव्रत एवं श्रावकवर्ग के अणुव्रतों को मूलगुण के अन्तर्गत लिया गया है एवं श्रमणवर्ग के पिण्डविशुद्धि आदि गुण एवं श्रावकवर्ग के दिग्विरति आदि व्रत को उत्तरगुण के अन्तर्गत लिया गया है। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित दस और प्रत्याख्यान हैं, जिन्हें कालिक प्रत्याख्यान के अन्तर्गत लिया गया है। वे दस प्रत्याख्यान इस प्रकार हैं- नवकारसी, पोरसी, पुरिमड्ड, एकासन, एकलठाणा, आचाम्ल (आयम्बिल), उपवास, अचित्तपानी आगार-चरित्र, अभिग्रह एवं विकृति (विगय ) - त्याग । इन प्रत्याख्यानों को कालमर्यादापूर्वक किया जाता है, इसलिए इनका कालिक - प्रत्याख्यान में समावेश किया गया है। कालिकप्रत्याख्यान की विधि सात द्वारों के आधार पर बताई जाती है। ये द्वार हैं ग्रहणद्वार, आगारद्वार, सामायिकद्वार, भेदद्वार, भोगद्वार, स्वयंपालनद्वार और अनुबंधद्वार । प्रत्याख्यान किसके लिए सफल होता है, इस विषय में यह बताया है कि मोक्षाभिलाषी जीव के उपलब्ध और अनुपलब्ध सारे पदार्थों के प्रत्याख्यान सफल होते हैं, क्योंकि वह मोक्ष की इच्छा से प्रत्याख्यान करता है। षष्ठ पंचाशक प्रस्तुत पंचाशक में आचार्य हरिभद्र ने स्तुति ( स्तवन) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए इस पंचाशक का नामकरण स्तवन विधि किया है। इस प्रकरण में द्रव्य व भाव के भेद से दो प्रकार के स्तवन Jain Education International For Personal & Private Use Only 34 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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