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9. पूजास्वरूप-षोडशक 10.पूजाफल-षोडशक 11. श्रुतज्ञानलिंग- षोडशक 12. दीक्षाधिकारी-षोडशक 13. गुरुविनय-षोडशक 14.योगभेद-षोडशक 15.ध्येयस्वरूप-षोडशक
16.समस्त-षोडशक विंशतिविंशिका
प्रस्तुत बीस विंशिकाएँ 20-20 प्राकृत गाथाओं में निबद्ध हैं। प्रथम अधिकार-विंशिका में 20 ही विंशिकाओं के विषयों का प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय विंशिका में लोक के स्वरूप का निर्देश प्राप्त होता है। तृतीय विंशिका में कुल, नीति और लोक-धर्म का चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। चतुर्थ विंशिका में चरम परिवर्त के विषय में विचार किया गया है। पंचम विंशिका में शुद्ध धर्म प्राप्त करने की विधि का विवरण है। षष्ठ विंशिका में सद्धर्म का विस्तार से वर्णन है। सप्तम विंशिका में दान-धर्म का विवरण प्राप्त होता है। अष्टम विंशिका में पूजा-विधान का विवेचन है। नवम विंशिका में श्रावक-धर्म की चर्चा है। दशम विंशिका में श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख है। ग्यारहवीं विंशिका में मुनि-धर्म की चर्चा की गई है। बारहवीं विंशिका शिक्षा-विंशिका है जिसमें आध्यात्मिक-जीवन के लिए उपयोगी शिक्षाएँ दी गई हैं। तेरहवीं विंशिका में भिक्षा के विषय में विशिष्ट चर्चा है। चौदहवीं विंशिका में अंतराय-शुद्धि पर विचार किया गया है, साथ ही इसमें भिक्षा में आने वाले अन्तरायों का भी वर्णन पन्द्रहवीं विंशिका में आलोचना की प्रकिया को प्रस्तुत किया गया है। सोलहवीं विंशिका में प्रायश्चित्त की चर्चा करते हुए विभिन्न प्रायश्चित्तों का संक्षिप्त विवरण दिया गया है। सत्तरहवीं विंशिका में योग के स्वरूप को बताया गया है। अठारहवीं विंशिका में केवल-ज्ञान के स्वरूप का स्पष्टीकरण किया गया है। उन्नीसवीं विंशिका में सिद्धों के स्वरूप का विश्लेषण है। बीसवीं विंशिका में सिद्धों के सुखों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
इस प्रकार सभी विंशिकाओं में जिन धर्म के स्वरूप का एवं आत्म साधना के विविध विषयों का विश्लेषण किया गया है। योगविंशिका
आचार्य हरिभद्र द्वारा रचित योगविंशिका प्राकृत में है। यह कृति 20 गाथाओं की एक लघु रचना है। यह रचना वसुबन्धु के विंशिका ग्रन्थ से मिलती-जुलती है। इस ग्रन्थ पर उपाध्याय श्री यशोविजयजी
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