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________________ कर्मों के विपाक का चिन्तन करता है, वह सामायिक प्रतिमाधारी है।' उपासकाध्ययन में नियम से तीनों सन्ध्याओं को विधिपूर्वक सामायिक करने को सामायिक-प्रतिमा माना गया है। वसुनन्दि-श्रावकाचार में स्नानादि से शुद्ध होकर चैत्यालय या प्रतिमा के सम्मुख या पवित्र स्थान में पूर्व या उत्तरमुख होकर जिनवाणी, जिनबिम्ब, जिनधर्म व पंच-परमेष्ठी की जो त्रिकाल वन्दना करता है, उसे सामायिक प्रतिमाधारी कहा गया है। सागरधर्मामृत में भी उपासकदशांग-टीका का ही अनुसरण किया गया है। आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के दसवें अध्याय में सामायिक के गुण-दोषों का विवरण करते हुए कहा है मणदुप्पणिहाणादि ण होंति-एयम्मि भावओ संते। सतिभावावट्ठिय कारिया य सामण्णबीयंति।। सामायिक के भाव होने पर मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान और कायदुष्प्रणिधान नहीं होते हैं, अपितु समत्वभाव में सजगता और अवस्थिति होती है, क्योंकि यह सामायिक सर्वविरति सामायिकरूपी वृक्ष के लिए बीजरूप है। आचार्य हरिभद्र द्वारा वर्णित सामायिक-प्रतिमा के अनुसार ही दिगम्बर-परम्परा ने भी सामायिक-प्रतिमा के स्वरूप को स्वीकार किया है, किन्तु दोनों में अन्तर भी है। दिगम्बर-आचार्यों ने इसमें द्वादशावर्त वन्दन, ध्यान आदि को भी जोड़ लिया है। पौषध-प्रतिमा- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण की उपासकप्रतिमाविधि में चतुर्थ पौषध-प्रतिमा के विषय में चर्चा करते हुए कहा है कार्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामी कार्तिकेय - 71-72 2 उपासकाध्ययन - आ. सोमदेव - 871 3 वसुनन्दी श्रावकाचार – आ. वसुनन्दी – पृ. - 274-275 सागारधर्माऽमृत - पं. आशाधर-7/1 5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/13 - पृ. 168 6 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/14 - पृ. 168 355 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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