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दशाश्रुतस्कंध में भी इन प्रतिमाओं का वर्णन प्राप्त होता है।
आचार्य हरिभद्र ने दशाश्रुतस्कंध में वर्णित ग्यारह प्रतिमाओं के आधार पर ही पंचाशक-प्रकरण में भी ग्यारह प्रतिमाओं का प्रतिपादन किया है। दिगम्बर-परम्परा के अनुसार आचार्य कुन्दकुन्द ने ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख एक ही गाथा में किया है
"दसणवय सामाइय पोसह सचित्त, राय भते य ।
बंभारंभ परिग्गह अणुमण उद्दिट्ठ देस विरदोय ।। रत्नकरण्डक-श्रावकाचार में श्रावक के ग्यारह पद कहकर प्रत्येक का स्वरूप प्रतिपादित किया है।
कार्तिकेयानुप्रेक्षा में प्रतिमाएँ बारह बताई हैं। इसके अतिरिक्त अमितगति श्रावकाचार, वसुनन्दी श्रावकाचार, सागारधर्माऽमृत में ग्यारह-ग्यारह प्रतिमाओं का ही वर्णन प्राप्त होता है।
श्वेताम्बर और दिगम्बर-परम्परा की ग्यारह-ग्यारह प्रतिमाओं का जो वर्णन किया गया है, उनके नाम एवं क्रम में कुछ अन्तर प्राप्त होता है।
___श्वेताम्बर–साहित्य में पंचाशक-प्रकरण के अनुसार ही दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, नियम, ब्रह्मचर्य, सचित्तत्याग, आरम्भत्याग, प्रेष्यारम्भपरित्याग, उद्दिष्टमत्तत्याग और श्रमणभूत - इस क्रम से नामोल्लेख प्राप्त होते हैं। जबकि दिगम्बर-परम्परा में रत्नकरण्डक-श्रावकाचार आदि ग्रन्थों में प्रतिमाओं के नाम और क्रम इस प्रकार हैं
दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तिविरति, ब्रह्मचर्य, आरम्भपरित्याग, परिग्रहत्याग, अनुमतित्याग और उद्दिष्टत्याग।'
3 चारित्रपाहुड - कुन्कुन्दाचार्य - 22 * रत्नकरण्डश्रावकाचार - स्वामि समंतभद्र- 1/137 से 147 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा - स्वामि कार्तिकेय - गाथा- 24, 27, 28, 29, 70 से 90 तक '(क) अमितगति-श्रावकाचार - आ. अमितगति -7/67 से 78 (ख) वसुनन्दिश्रावकाचार - आ. वसुनन्दि - 205 से 213 (ग) सागारधर्माऽमृत - पं. आशाधर-3/7 से 7/37
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