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________________ भगवान् महावीर को नमस्कार करके मैं भव्य जीवों के हितार्थ श्रावक के अभिग्रह -विशेष रूप प्रतिमाओं के सम्बन्ध में संक्षेप में (दशाश्रुतस्कंध नामक) आगम के अनुसार कुछ कहूंगा। __ आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में निम्न प्रकार से श्रावक की प्रतिमाओं की संख्या बताई है समणोवासगपडिमा एक्कारस जिणवरेहिं पण्णत्ता। दसणपडिमादीया सुयकेवलिणा जतो भणियं ।। भगवान् जिनेन्द्रदेव ने श्रावक की दर्शन-प्रतिमा आदि ग्यारह प्रतिमाएँ कही हैं, श्रुत केवली भद्रबाहु ने भी उन्हीं ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख किया है। आचार्य हरिभद्र के पंचाशक-प्रकरण के अनुसार वे श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ निम्न हैं दसण-वय-सामाइय-पोसह- पडिया-अबंभ-सच्चित्ते । आरंभ-पेस-उद्दिठ्ठवज्जए समणभूए य।। 1. दर्शन 2. व्रत 3. सामायिक 4. पौषध 5. नियम 6. मैथुन-वर्जन 7. सचित्त-वर्जन 8. आरम्भ-वर्जन 9. प्रेष्य-वर्जन 10. उद्दिष्ट-वर्जन 11. श्रमणभूत – ये श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ हैं। श्रावक की इन ग्यारह प्रतिमाओं का उल्लेख समवायांग, उपासकदशांग आदि ग्रन्थों में भी मिलता है। उपासकदशांग में भी प्रतिमाओं के ग्रहण करने का संकेत है, किन्तु उसमें संख्या का उल्लेख नहीं है। “आनन्दे, समणोवासए उवासग पडिमाओ उवसंपज्जिताणं विहरई।।" परन्तु इन प्रतिमाओं की स्पष्टता उपासकदशांगसूत्र के टीकाकार अभयदेवसूरि ने प्रत्येक प्रतिमा का स्वरूप वर्णित करके की है। पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 10/3- पृ. - 164 'उपासकदाांगसूत्र - म. महावीर- 1/70 - पृ. 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि - पृ. - 68 346 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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