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________________ स्त्री-संसर्ग, गंध, धूप आदि का परिहार करता है, उपवास एकासन या विकाररहित नीरस भोजन करता है, वह पौषधोपवासधारी कहा जाता है। पुरुषार्थ-सिद्धयुपायु में सर्व-सावद्य कार्यों को छोड़कर सोलह प्रहर व्यतीत करने एवं उस काल में पूर्ण अहिंसाव्रत का पालन करने को पौषधोपवासव्रत बताया गया उपासकाध्ययन में कहा गया है कि इस दिन विशेष पूजा, क्रिया एवं व्रतों का आचरण कर धर्मकार्य की वृद्धि करना चाहिए। पर्व के दिनों में रसों का त्याग करना, एकासन, एकान्त-निवास, उपवास आदि करना चाहिए। चारित्रसार, अमितगति-श्रावकाचार और श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में उपासकदशांगसूत्रटीका की तरह ही चारों प्रकार के आहार-त्याग को पौषध कहा है। ___ योगशास्त्र में पर्व के दिनों में उपवास आदि तप करना, पापमय क्रियाओं का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, शारीरिक-शोभा का त्याग करना पौषधोपवास तत्त्वार्थ-भाष्य में पर्वकाल को पौषध का काल कहते हैं। आहार का परित्याग करके धर्म-साधना के लिए धर्मायतन में निवास करने को पौषध और पर्वकाल में जो उपवास किया जाए, उसे पौषधोपवासव्रत कहते हैं।' पौषध की तिथियां- पौषध कौन सी तिथियों में करना चाहिए ? इसकी चर्चा कई आचार्यों ने की है, परन्तु पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने पौषध की तिथियों के विषय में कोई चर्चा नहीं की है। आचार्य हरिभद्र ने श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में अवश्य पौषध की तिथियों का वर्णन किया है। * पुरुषार्थ सिद्धपायु - अमृतचन्द्राचार्य - 157 ' उपासकाध्ययन - सोमदेवसूरि - 7/8/19 ' (क) चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - 247 (ख) अमितगति-श्रावकाचार - आ. अमितगति- 7/12 (ग) श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि-321/22 ' योगशास्त्र - हेमचन्द्राचार्य- 3/85 1 "पौषधोपवास नाम पौषधे उपवासः पौषधोपवासः पौषधे पर्वेव्यनर्थान्तरम्।। - पं. खूबचन्द - तत्त्वार्थ-भाष्य-7/16 314 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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