________________
5. पुद्गल-प्रक्षेप- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में देशावकासिकव्रत के पांचवें अतिचार का वर्णन करते हुए कहा है कि मर्यादित क्षेत्र के बाहर के व्यक्ति को बुलाने के लिए कंकड़ आदि फेंकना पुद्गल-प्रक्षेप अतिचार है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार मर्यादित क्षेत्र से बाहर का काम करवाने के लिए कंकड़ आदि फेंककर दूसरों को ईशारा करना पुद्गल-प्रक्षेप -अतिचार है।'
तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार कंकड़, ढेला आदि फेंककर किसी को अपने पास आने के लिए सूचना देना पुद्गल-प्रक्षेप-अतिचार है।
तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार सीमा से बाहर कोई वस्तु फेंककर अपना होना ज्ञात करवाना- इसे पुद्गल-प्रक्षेप-अतिचार कहते हैं।
आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में बारह व्रतधारी श्रावकों को निर्देश दिया है कि लिया हुआ यह व्रत दूषित न हो, इस हेतु इन अतिचारों का त्याग करना चाहिए। पौषध-व्रत- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण में पौषध-व्रत की चर्चा करते हुए पौषध की विधि बताई है
आहार देह सक्कार बंभवावार पोसहोयऽन्नं । देसे सव्वे य इमं चरमे सामाइयं णियमा।।' आहार–पौषध, देहसत्कार–पौषध, ब्रह्मचर्य-पौषध और अव्यापार–पौषध । आहार–पौषध – आहार का त्याग । देहसत्कार-पौषध – शरीर को सुशोभित करने का त्याग ।
पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/29 - पृ. - 12 2 पौशधशब्दोइश्टभ्यादि पर्वसुरुढ़ः तत्रपौशधे उपवासः पौशधोपवासः सचाहारादि विशयभेदाच्चतुर्विधः इतितस्य -
312
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org