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________________ के अनुसार वचन से असत्य बोलना एवं हिंसादि कार्यों का आदेश देना वचनदुष्प्रणिधान है। 3. कायदुश्प्रणिधान - पंचाशक प्रकरण के अनुसार पापयुक्त कार्य करना कायदुश्प्रणिधान अतिचार है।" उपासकदशांग टीका के अनुसार देह से हिंसादि कुचेश्टाएं करना कायदुश्प्रणिधान है।12 तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार हाथ-पैर आदि अंगों के व्यर्थ में बुरी तरह से चलाते रहना कायदुष्प्रणिधान है।' चारित्रसार में शरीर के हस्तपाद आदि अंगों को स्थिर नहीं रखना कायदुष्प्रणिधान माना है। श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में सामायिक-योग्य भूमि को आँखों से न देखकर कोमल वस्त्र से प्रमार्जन नहीं कर उस स्थान का सेवन करना है, उसे कायदुष्प्रणिधान-अतिचार कहते हैं। तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार चखले से बिना प्रमार्जन किए स्थान में बैठना, पांव आदि पसारना, सामायिक में बिना देखे चलना, रात्रि में चखले से बिना प्रमार्जन चलना कायदुष्प्रणिधान है।' 4. स्मृति-अकरण- पंचाशक-प्रकरण के अनुसार प्रमाद के कारण सामायिक नहीं करना या सामायिक का समय भूल जाना स्मृतिअकरण-अतिचार है।' ॥ पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/26 - पृ. - 11 12 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/53 - पृ. -50 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति- 7/28 - पृ. - 189 चारित्रसार – चामुण्डाचार्य – पृ. - 246 ' श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि- 3/5 + तत्त्वज्ञान-प्रवेशिक - प्र. सज्जनश्री - भाग-3 - पृ. - 24 5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/26 - पृ. - 11 6 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1/53 - पृ. - 50 ' तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/28 - पृ. - 189 8 (क) योगशास्त्र - आ. हेमचन्द्राचार्य-3/116 (ख) श्रावकप्रज्ञप्ति टीका - आ. हरिभद्रसूरि-3/6 303 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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