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मनोदुष्प्रणिधान 4. अनादर और 5. स्मृति-अनुपस्थापना, जो नाम व क्रम में पंचाशक से कुछ असमानता रखते हैं। 1. मनोदुष्प्रणिधान- पंचाशक के अनुसार पाप-युक्त विचार करना मनोदुष्प्रणिधान-अतिचार है। उपासकदशांगटीका के अनुसार दूषित चिन्तन मनोदुष्प्रणिधान है। तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार क्रोध, द्रोह आदि विकारों के वश में होकर चिन्तन आदि मनोव्यापार करना मनोदुष्प्रणिधान है।' तत्वज्ञान-प्रवेशिका के अनुसार मन से दुश्चिन्तन करना मनोदुष्प्रणिधान है। चारित्रसार के अनुसार सामायिक करने में मन को न लगाने को मनोदुष्प्रणिधान बताया गया है। योगशास्त्र के अनुसार क्रोध, लोभ, द्रोह, अभिमान, ईर्ष्या और कार्य की व्यस्तता से उत्पन्न क्षोभ मन को जिस प्रकार दुष्प्रवृत्त करता है, उसे मनोदुष्प्रणिधान कहते हैं।' 2. वचनदुष्प्रणिधान- पंचाशक-प्रकरण के अनुसार पापयुक्त वचन बोलना वचनदुष्प्रणिधान है।
उपासकदशांगटीका के अनुसार वाणी का दुरुपयोग करना, मिथ्या भाषण करना, हृदय को आघात लगे- एसी बात करना वचनदुष्प्रणिधान है। तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार संस्कार-रहित तथा अर्थरहित एवं हानिकारक भाषा बोलना वचनदुष्प्रणिधान है।'
___ चारित्रसार के अनुसार शब्दों के उच्चारण में और उसके भावरूप अर्थ में अजानकारी और चपलता रखना वचनदुष्प्रणिधान है।
श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में सामायिक के उद्यत व्यक्ति को पूर्व में बुद्धि से विचार कर निर्दोष भाषण न करने को वचनदुष्प्रणिधान कहा है। तत्त्वज्ञान-प्रवेशिका
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-1/28 - पृ. - 185 4 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 1/26 - पृ. - 11 5 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि-1/53 - पृ. - 50
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/28 - पृ. - 189 तत्त्वज्ञान-प्रवेशिक - प्र. सज्जनश्री - भाग-3-पृ. - 24
चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 246 * योगशास्त्र - आ. हेमचन्द्राचार्य- 3/115 5 पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि-1/26 - पृ. - 11 6 उपासकदशांग टीका - आ. अभयदेवसूरि-1/53 - पृ. - 50
तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-7/28 - पृ. - 189 चारित्रसार - चामुण्डाचार्य - पृ. - 246 १ श्रावकप्रज्ञप्तिटीका - आ. हरिभद्रसूरि- 3/4 10 तत्त्वज्ञान-प्रवेशिक - प्र. सज्जनश्री - भाग-3-पृ. -24
पृ. - 50
-चामुण्डाचार्य 11/28 - पृ.
'श्रावक
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