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________________ जीवन इन तीनों की अत्यधिक आवश्यकता रहती है- रोटी, कपड़ा, मकान। पेट भरने के लिए रोटी की आवश्यकता है। शरीर को ढंकने के लिए कपड़े अनिवार्य हैं और इस शरीर को रखने के लिए मकान की आवश्यकता है। इस व्रत के द्वारा इन तीनों का नियन्त्रण हो जाता है, अतः श्रावक विवेकपूर्वक इन व्रतों का पालन करते हुए सुख, शान्ति और समाधि प्राप्त कर सकता है। अनर्थदण्ड- विरमणव्रत- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण में तीसरे गुणव्रत अनथदण्ड - विरति का प्रतिपादन किया है । आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक - प्रकरण में श्रावकधर्मविधि - पंचाशक की तेईसवीं गाथा में तीसरे गुणव्रत अनर्थदण्ड - विरमण की व्याख्या करने के पूर्व अनर्थदण्ड कितने प्रकार का है, इसका प्रतिपादन किया है। ”तथाऽनर्थ दण्डविरतिः अन्यत् स चतुर्विधः अपध्याने । प्रमादाचरिते हिंस्रप्रदान पापोपदेश च । ।' अनर्थदण्ड के अपध्यान ( अशुभध्यान), प्रमादाचरण (प्रमत्त होकर कार्य करना), हिंसक शस्त्र-प्रदान ( हथियार आदि दूसरों को देना) और पापोपदेश (पाप कर्मों का उपदेश देना) - ये चार भेद होते हैं। उपासक दशांगटीका में भी अनर्थदण्ड के उपरोक्त चार प्रकार पंचाशक के समान ही वर्णित हैं। 2 सावयपण्णति में भी इसी प्रकार के भेद देखने को मिलते हैं । योगशास्त्र में भी पंचाशक - प्रकरण के अनुसार ही हैं। दिगम्बर-ग्रन्थों में रत्नकरण्डक - श्रावकाचार, सर्वार्थसिद्धि, सागारधर्माऽमृत आदि में अनर्थदण्ड के पांच भेद किए गए हैं। इनके पापोपदेश, हिंसादान, अपध्यान, दुःश्रुति एवं प्रमादचर्या - ये पांच नाम दिए हैं, जो चार तो पंचाशक के अनुसार ही है, " किन्तु इनमें दुःश्रुति नामक एक और भेद बताया गया है, जो पंचाशक आदि में नहीं है। ' पंचाशक- प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि - 1/23 2 उपासकदशांगटीका - आ. अभयदेवसूरि- 1 /43 - पृ. - 37 - पृ. 10 3 सावयपण्णति - आ. हरिभद्रसूरि - गाथा - 289 - पृ. - 173 4 योगशास्त्र - आ. हेमचन्द्राचार्य - 3/112 5 (क) रत्नकरण्ड श्रावकाचार - स्वामी समन्तभद्र - गाथा - 75- पृ. 125 (ख) सर्वार्थ सिद्धि पूज्यपाद - 7/21 Jain Education International For Personal & Private Use Only 282 www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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