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________________ तत्त्वार्थ-सूत्र में भोजन-सम्बन्धी पांच अतिचारों का वर्णन इस प्रकार का है। श्रावकाचार संग्रह में भी भोजन-आश्रित पांच अतिचारों का वर्णन पंचाशक के अनुसार ही है।' __पंचाशक-प्रकरण मे आचार्य हरिभद्रसूरि ने अतिचारो का संक्षेप में ही वर्णन किया है, पर हम उनके द्वारा किए गए संक्षिप्त वर्णन से ही सार को समझने का प्रयास करेंगे। 1. सचित्त- स + चित्त । 'स' अर्थात् सहित, 'चित्त' अर्थात् जीव, इस प्रकार जीव सहित वह सचित्त है। श्रावक को सचित्त आधार का त्यागी होना चाहिए, जबकि पंचाशक में यह स्पष्ट कहा है कि श्रावक सचित्त आहार का त्याग करता है। व्रत को लेकर जो भूल से खाए, उसे यह अतिचार लगता है, अतः श्रावक विवेक रखे, सचित्त आहार नहीं करे, अर्थात् कच्ची सब्जी आदि नहीं खाना चाहिए एवं फल आदि को सुधारने के लिए अड़तालीस मिनट के बाद ग्रहण करना चाहिए, पानी गर्म किया हुआ पीना चाहिए। प्रश्न यह है कि श्रावक को हिंसा करने का निषेध बताया है, फिर पानी आदि गरम करने पर जीवों की हिंसा होती है, तो क्या कच्चा पानी ही पीना चाहिए ? यह सच है कि यह हिंसा है, पर श्रावक के भाव हिंसा के नहीं हैं, पानी में असंख्य जीव हैं, जहाँ हर क्षण जन्म-मरण की क्रिया चलती रहती है, अतः हिंसा हर पल हो रही है, परन्तु पानी गर्म करने के पश्चात् 9 घण्टे से 12 घण्टे के लिए हिंसा बन्द हो जाती है, अतः श्रावक को हिंसा का अल्पदोष लगता ही है, जिसका प्रायश्चित्त"मिच्छामि दुक्कड़ है। व्यर्थ की हिंसा से पहले बचें, फिर अर्थ की हिंसा से बचें। अर्थ की हिंसा से बचने की बात तो समझ में आती है, पर अर्थ की हिंसा से बचने का अर्थ क्या है ? इसका तात्पर्य है- दीक्षाग्रहण कर लेना। 2. सचित्त-सम्बद्ध - यदि अचित्त पदार्थ सचित्त से सम्बन्धित है, तो ऐसा आहार नहीं करना चाहिए, जैसे- वृक्ष में आम लगा हुआ है, तो आम को अचित्त समझकर नहीं खाना चाहिए। वृक्ष में गोंद लगा है, तो उसे अचित्त नहीं समझना चाहिए। वृक्ष से विभक्त होने के जघन्य 15 मिनट उत्कृष्ट 40 मिनट बाद वह अचित्त हो जाता है। 4 श्रावकाचार संग्रह - पं. हीरालाल शास्त्री- भाग -3- गाथा-68 - पृ. - 425 278 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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