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________________ | पिंडालू मैं बत्तीस अनन्तकाय-वनस्पति का यथाशक्ति त्याग करता/करती हूँ। | सुरण कण्द गिलोय | मूली | कोमल इमली जमीकन्द लहसुन पद बहेड़ा भूमि फोड़ा कच्ची हल्दी गाजर | आलू खिलोड़ा शत्तावरी प्याज | कचालू वत्थुला भाजी | कच्चा नरकचूर . कोमल रतालू सुअर वेल फल-फूल-पत्र अदरक थेगी पालक भाजी गंवारपाठा हरा मोथा | लूणी | कोमल वनस्पति थोर अमृतबेल | साजीवृक्ष वंशकरेला मैं निम्न बाईस अभक्ष्य का यथाशक्ति त्याग करता/करती हूँबड | पिलखण | गूलर मांस मक्खन । | ओले रात्री भोजन पीपल कटुंबर मदिरा | शहद बरफ । कच्ची बहुबीजफल आचर द्विदल तुच्छफल चलितरस । पोलवड़े बैंगन अजानाफल | अनन्तकाय राटा नरम पूड़ी रायता मैं इन चलित रस-वस्तुओं का भी यथाशक्ति त्याग करता हूँ/करती हूँ :दाल श्रीखण्ड रसगुल्ला | नरम सेव सब्जी | कच्ची चाशनी | नरम भुजिया, | पकौड़े दूधमलाई मलाई | एकतार की | भीगी हुई दालें | चाशनी हलुआ या पूरणपोली । श्रावक-जीवन - आ. भद्रगुप्तसूरि – पृ. - 190 275 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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