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________________ और उनके पारस्परिक प्रेम एवं समर्पण-भाव को सुदृढ़ करता है। जब भी इस व्रत का भंग होता है, तब पारिवारिक जीवन में अशान्ति एवं दरार पैदा हो जाती है। व्रत भंग करने वाला इस लोक में भी दुःखी होता है, व परलोक में भी दुःखी होता है। इस विषय की चर्चा करते हुए आचार्य हेमचन्द्र ने कहा हैस्वदार-संतोषी बनकर परस्त्री का त्याग करें। परस्त्री के साथ कामभोग करने के दुष्परिणामों को बताते हुए कहा है- अपनी प्रचण्ड शक्ति से सम्पूर्ण संसार को आक्रान्त करने वाला शक्तिशाली रावण भी परस्त्री-रमण की इच्छा के कारण अपने कुल का क्षय करके नर्क का मेहमान बना। 'विक्रमाक्रान्त विश्वोऽपि, परस्त्रीणुरिरंसया। कृत्वा कुलक्षयं प्राप, नरकं दशकन्धरः ।।' आचार्य हेमचन्द्र ने यह भी संकेत दिया है- जिस प्रकार परस्त्री वर्जनीय है, वैसे ही परपुरुष-सेवन भी त्याज्य है। इस विषय में स्त्रियों को सलाह दी है कि ऐश्वर्य से कुबेर के समान, रूप से कामदेव के समान सुन्दर होने पर भी स्त्री को पर-पुरुष का उसी प्रकार त्याग कर देना चाहिए, जैसे- सीता ने रावण का त्याग किया था। 'ऐश्वर्य राजराजोऽपि रूपमीनध्वजोऽपि च। सीतया रावण इव त्याज्यो नार्या नरः परः ।। प्रश्न-व्याकरण में इसे भगवान कहा गया है। श्रमणों में तीर्थंकर की तरह ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ होता है। इसकी साधना से सभी व्रतों की साधना हो जाती है। भगवती-आराधना में कहा गया है- जीव ब्रह्म है, जीव में जो परदेह रूप सेवन-चर्या नहीं होती है, उसे ब्रह्मचर्य समझें। 1 डॉ. सागरमल जैन अभिनन्दनग्रन्थ - लेख.श्रावक आचार को प्रासंगिकता का प्र न - पृ. - 330 योगशास्त्र - आचार्य हेमचन्द्रसूरि-2/99 - पृ. - 344 2 योगशास्त्र - आचार्य हेमचन्द्रसूरि-2/102 - पृ. - 302 3 तं बभं भगवन्तं - प्र. नव्याकरण - संवरद्वार-4 4जीवो बंभो जीवम्भि चेव चरिया हविन्ज जा जिणिपदो तं जाणं बंभचेरं विमुक्क पर देहतितिस्य - भगवती-आराधना - सूत्र- 878 5 एक्क गुणनायक - प्र. नव्याकरण - संवरद्वार-4 (क) उग्गं महत्त्वयंधारययव्वं सुद्कक्करं - उत्तराध्ययन - 19/22 (ख) घोर बंभचारी - उत्तराध्ययन - 19/20 255 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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