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दृढ़ - विश्वास होने के कारण वह स्त्री अपनी गुप्त बात भी अपने पति को बता देती है कि शादी के पूर्व उसका किसी के साथ कोई सम्बन्ध था, अब उसे इसका बहुत दुःख हो रहा है। पत्नी की इस बात को सुनकर पति ने उसे उसे वचन दिया कि मैं यह बात किसी को कभी भी नहीं बताऊंगा । कुछ वर्ष बीते। किसी बात को लेकर उनमें परस्पर कलह हो गया, तब गुस्से में आकर पति ने वह बात अन्य लोगों के सामने प्रकट कर दी, फलतः पत्नी ने आवेश में आकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार पत्नी की गुप्त बात को प्रकट करने का परिणाम स्वयं के लिए भी व दूसरों के लिए भी घातक सिद्ध हुआ ।
प्रश्न यह है कि क्या पत्नी की ही गुप्त बात प्रकट नहीं करना है ? क्या अन्य किसी की गुप्त बात को प्रकट कर सकते हैं ? बुद्धिमानों के लिए यह संकेत ही पर्याप्त है कि पत्नी ही क्या, अन्य किसी की भी बात को प्रकट नहीं करना चाहिए, क्योंकि अपनी गुप्त बात किसी के सामने प्रकट हो, तो कोई भी सहन नहीं कर पाएगा, यहाँ एक ही रूप में कही गई बात को सभी के लिए समझ जाना चाहिए ।
(4) मिथ्योपदेश - दूसरों को झूठ बोलने की सलाह देना मिथ्योपदेश है। यदि कभी किसी कारणवश झूठ बोलने का प्रसंग आ जाए, तो यह विचार करना चाहिए कि मैं असत्य कैसे बोलूं ? मैंने तो अणुव्रत लिए हैं, परन्तु मिथ्या का आश्रय लिए बिना कार्य भी नहीं होगा, अतः किसी अन्य से असत्य बुलवा दूं। उतना असत्य कैसे बोलना है, यह उस अन्य को सिखा दिया गया और वह कार्य भी हो गया, अणुव्रत भी भंग नहीं हुआ । व्रत को सुरक्षित रखने की भावना थी, अतः अणुव्रत तो भंग नहीं हुआ, अर्थात् अनाचार तो नहीं हुआ, पर मिथ्योपदेश का अतिचार तो लग गया। अतिचार से भी बचना है, तो दूसरों को झूठ बोलने की सलाह नहीं देना चाहिए ।
(5) कूटलेखकरण - पंचाशक - प्रकरण में अतिचार का पाँचवां भेद जाली लेख तैयार करना या जाली हस्ताक्षर करना या जाली दस्तावेज आदि तैयार करना है। इसे कूटलेख - क्रिया कहते हैं ।
यदि व्रतधारी व्यक्ति ऐसा सोचे कि झूठ नहीं बोलना - यह मेरा व्रत है, पर झूठ नहीं लिखना - यह मेरा व्रत कहाँ है ? अतः झूठ लिखने पर मेरा व्रत भंग नहीं होगा- यह समझकर यदि जाली लेख लिखता है, तो अणुव्रती का व्रत दूषित होता है,
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