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________________ लिए और उन्हें पुष्ट करने के लिए उत्तरगुणों का प्रतिपादन किया है, जो उत्तरगुण, गुणव्रत और शिक्षाव्रत के रूप में है। उत्तरगुण अणुव्रतों में शक्ति का संचार करते हैं, बल भरते हैं। उत्तरगुण अणुव्रतों में रखी गई सीमा मर्यादा को अधिक संक्षिप्त करते हैं, अथवा पाप-प्रवृत्ति की संग्रह-वृत्ति को संक्षिप्त करते हैं, जिससे अणुव्रतों का पालन अधिक सरलता से हो सके। तत्वज्ञान-प्रवेशिका में कहा गया है कि अणुव्रतों के गुणों की पुष्टि करने के कारण ही ये गुणव्रत कहलाते हैं। __ आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है कि जैसे परकोटे नगर की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार शीलव्रत अणुव्रतों की रक्षा करते हैं। यहाँ शीलव्रत से तात्पर्य उत्तरगुणों से है। पंचाशक-प्रकरण में आचार्य हरिभद्र ने गुणव्रत व शिक्षाव्रत को उत्तरगुण कहा है, जबकि आचार्य अभयदेवसूरि ने उपासक दशांग में गुणव्रत व शिक्षाव्रत को संयुक्त रूप से शिक्षाव्रत कहा है।' तत्त्वार्थ-सूत्र में देशविरति को गुणव्रत में माना है एवं भोगापभोग को शिक्षाव्रत में माना है, जो पंचाशक-प्रकरण के अनुसार नहीं है। "रत्नकरण्डकश्रावकाचार में दिग्व्रत-अनर्थदण्ड, भोगोपभोगपरिणाम को गुणव्रत कहा है तथा देशावगासिक, सामायिक, पौषधोपवास, वैयावृत्य को शिक्षाव्रत कहा है, जो पंचाशक से समानता रखता है। इस प्रकार विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रतिपादित गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों के क्रम में जो भी विभिन्नता हो, परन्तु उनकी मूल भावना में कोई मतभेद नहीं है। 'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/7 - पृ. -3 तत्वज्ञान-प्रवेशिका - प्रवर्तिनी सज्जनश्री - भाग - 3 पृ. - 21 "पुरुशार्थ सिद्धयुपाय - आ. अमृतचन्द्र – पृ. - 136 4 उपासकदशांगटीका. - आ. अभयदेवसूरि - 1/12 - पृ. - 26 'तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति -7/16 रत्नकरण्डरावकाचार - आ. समन्तभद्र - 1/4 229 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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