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________________ प्रतिष्ठा के समय उसी शुभ मुहूर्त में जिन-मन्दिर के चारों ओर सौ हाथ तक जमीन को अवश्य ही शुद्ध कर लेना चाहिए, अर्थात् सौ हाथों की परिधि के अन्दर स्थित हड्डी, माँस अथवा अन्य अपवित्र वस्तुओं को हटा देना चाहिए तथा मन्दिर में गन्ध, पुष्प आदि से प्रतिमा का पूजन (सत्कार) करना चाहिए। प्रतिष्ठा में देवपूजा का विधान- अनेक आचार्यों का भी मत है तथा वर्तमान में भी यह प्रथा प्रचलित है कि परमात्मा की स्थापना के पूर्व सभी इन्द्रादि देवों की पूजा की जाती है। अनेक लोगों का प्रश्न यह होता है कि असंयमी देवों की पूजा क्यों की जाती जिन देवी-देवताओं की पूजा की होती है, वे प्रथम तो सम्यक्त्वी होते हैं, क्योंकि ये देवी-देवता परमात्मा के भक्त होते हैं। ये लोग भी नन्दीश्वर आदि द्वीपों में जाकर पूजा, भक्ति एवं महोत्सव मनाते हैं। ये मिथ्यात्वी नहीं होते हैं, अतः सम्यक्त्वी होने के कारण पूजा करने में कोई दोष नहीं होता है। इनकी पूजा करने का तात्पर्य है कि ये पूजा से प्रसन्न होकर संघ की एवं जिनधर्म की रक्षा के लिए तत्पर रहेंगे। संघ एवं धर्म की रक्षा आवश्यक है। प्रश्न होता है कि जब ये परमात्मा के भक्त हैं, तो ये पूजा से खुश होकर ही संघ एवं धर्म की रक्षा करेंगे- ऐसा क्यों मानें ? इन्हें तो बिना पूजा के ही संघ एवं धर्म की रक्षा करनी चाहिए। हम भी परमात्मा के भक्त हैं तथा परमात्मा की पूजा करते हैं, फिर भी संघ की, धर्म की, परिवार की रक्षा नहीं कर पाते। केवल एक-दूसरे को नीचे गिराने में, हानि पहुँचाने में ही लगे रहते हैं, जबकि हम भी हर दिन संसार की असारता का बोध प्राप्त करते रहते ही हैं, फिर भी हम छद्मस्थ हैं, संसारी हैं। धर्म की, संघ की रक्षा में हमें भी सम्मान की अपेक्षा रहती ही है। इस कारण से देवों की पूजा करके ही प्रतिमा की स्थापना करना चाहिए। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र जिनबिम्ब-प्रतिष्ठानविधि-पंचाशक की अठारहवीं से इक्कीसवीं तक की गाथाओं में' कहते 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8/18 से 21 – पृ. - 137,138 200 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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