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जिन-भगवान् के वीतरागता, तीर्थप्रवर्तन आदि गुणों को गुरु से सुनकर और जानकर विचारों के शुद्ध होने पर जीव की ऐसी बुद्धि होती है कि जिनबिम्ब बनवाना मनुष्य का कर्त्तव्य है और यही मनुष्य का जन्म-फल है।
___ भगवान् जिनेन्द्रदेव अतिशय गुण-सम्पन्न हैं। उनके बिम्ब का दर्शन भी कल्याणकारी होता है। उनकी प्रतिमा बनवाने से स्वयं को एवं दूसरों को भी उत्कृष्ट लाभ होता है, अतएव मोक्ष के लिए उद्यत् बुद्धिशाली जीव को मोक्षमार्ग के प्रणेता जिनेन्द्रदेव के उन असाधारण गुणों का प्रयत्नपूर्वक बहुमान करना चाहिए, अर्थात् मोक्ष-प्राप्ति के लिए जिनेन्द्रदेव के गुणों को महान् समझना चाहिए।
मोक्षमार्ग के अधिकारी जिनेन्द्रदेव के गुणों की प्रशंसा करने से तथा उनके प्रति शुभभाव रखने से शुभकर्मों का अनुबन्ध अवश्य होता है और उन कर्मों के उदय से सभी अभीष्ट फलों की प्राप्ति भी होती है।
उपर्युक्त प्रकार की शुद्ध बुद्धि से जिनबिम्ब-निर्माण कराने वाले जीव को उदारता से शुभ अध्यवसायपूर्वक निर्दोष शिल्पी का उचित समय पर भोजनादि से सम्मान कर अपने वैभव के अनुसार उसको उचित मूल्य देना चाहिए। दूषित शिल्पी को मूल्य देने की विधि - दूषित शिल्पी से तात्पर्य है वह शिल्पी, जिसके जीवन में व्यसन हो। जिनबिम्ब-निर्माण में शिल्पकार श्रेष्ठ जीवन-यापन करने वाला होना चाहिए। यदि ऐसा शिल्पकार शोध करने पर भी न मिले, तो ही अपवाद रूप में दूषित शिल्पकार से जिनबिम्ब-निर्माण का कार्य करवाया जाए। फिर भी, यह प्रयत्न हो कि जितने समय वह जिनबिम्ब-निर्माण का कार्य करे, उसे मधुर स्वरों से समझाकर बिम्ब-निर्माण तक उसे व्यसनों से मुक्त रखा जाए तथा ऐसे शिल्पकार से मूल्य निर्धारित करवाकर ही कार्य करवाया जाए, जिससे देवद्रव्य भक्षण आदि दोषों से बचा जा सकता है। इसी बात को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र जिनबिम्ब-प्रतिश्ठानविधि-पंचाशक की आठवीं से ग्यारहवीं तक की गाथाओं में कहते हैं
1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 8/11 - पृ. - 134 से 135
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