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________________ आराधक बनता है, क्योंकि जिसके चारित्र का पतन नहीं हुआ है, वही जीव अन्तिम समय में चारित्र का आराधक बन सकता है। निश्चयनय से चारित्र की आराधना- चारित्र लेना जीवन की उपलब्धि नहीं है। चारित्र लेकर चारित्र का जिनाज्ञानुसार पूर्णतः पालन करना है- वही वास्तव में जीवन की उपलब्धि है, अतः चारित्र को जिस शुभ भावोल्लास से स्वीकार किया है, उसी प्रकार से ही चारित्र का भी पालन करना चाहिए। इस प्रकार चारित्र को पुष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र जिनभवन निर्माणविधि-पंचाशक की उनपचासवीं गाथा में स्पष्ट करते हैं चारित्र स्वीकार करने से लेकर मृत्युपर्यन्त लगातार विधिपूर्वक संयम का पालन करना निश्चयनय से चारित्राराधना है। आराधना का फल- इस प्रकार ज्ञान, दर्शन और चारित्र की जो श्रेष्ठ प्रकार से साधना करता है, अर्थात् साधना करते हुए किसी प्रकार से विराधना नहीं करता है, वह आराधना अर्थप्रद होती है, सिद्धगति प्रदान करने वाली होती है। ज्ञानादि की आराधना से किस फल की प्राप्ति होती है ? इसे स्पष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र जिनभवन निर्माणविधि-पंचाशक की पचासवीं गाथा में उस वास्तविक स्थिति का चित्रण करते हुए कहते हैं ज्ञानादि की आराधना करने वाले जीव सात या आठ भवों में जन्म-मरणादि दोषों से रहित शाश्वत-सुख वाले मोक्ष को प्राप्त करता है। विशेष- यहाँ सात या आठ भव जघन्य आराधना की अपेक्षा से हैं। उत्कृष्ट आराधना से तो उसी भव में भी मोक्ष मिल सकता है। पंचाशक-प्रकरण में जिनबिम्बप्रतिष्ठाविधि- जिनबिम्ब-प्रतिष्ठा की चर्चा करने के पूर्व आचार्य हरिभद्र अपने आराध्य को नमस्कार करते हैं, क्योंकि आराध्य को किया गया नमस्कार ही कार्य की सफलता का हेतु है। ग्रन्थकार को यह विश्वास है कि विश्व पूज्य को किया गया नमस्कार ही उनके अज्ञानरूपी तमस्कार को हरकर उनमें ज्ञान का आलोक भर देगा और उसी का परिणाम होगा कि वे श्रुतज्ञान की सेवा करने में समर्थ पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि -1/49 - पृ. - 130 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 1/50 - पृ. - 130 194 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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