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________________ गौण रूप में द्रव्यस्तव है। उसका वर्णन शास्त्रों के अनुसार आचार्य हरिभद्र ने स्तवविधि-पंचाशक की अठाईसवीं एवं उन्तीसवीं गाथाओं में किया है साधु को भी जिनपूजा एवं दर्शन आदि से हुए हर्ष, प्रशंसा-रूप अनुमोदन से द्रव्यस्तव होता है। इस अनुमोदन को द्रव्यस्तव-प्रकरण में वर्णित शास्त्र-युक्ति से सम्यक् प्रकार से जानना चाहिए। चैत्यवन्दन को 'अरिहन्तं चेइयाणं' सूत्र में साधु के लिए भी जिनेन्द्र भगवान् के पूजन एवं सत्कार हेतु कायोत्सर्ग करने को कहा गया है। वह पूजन और सत्कार द्रव्यस्तवरूप हैं, इसलिए साधु को द्रव्यस्तव भी होता है- इसका अनुमोदन शास्त्र-सम्मत है। पूजा और सत्कार का स्वरूप- आचार्य हरिभद्र ने स्तवविधि-पंचाशक की तीसवीं गाथा में पूजा और सत्कार के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा है पूजा उसे कहते हैं, जो पुष्पमाला आदि से की जाती है तथा सत्कार उसे कहते हैं, जो उत्तम वस्त्रादि से पूजा की जाती है। अन्य आचार्यों के मत को भी स्पष्ट करते हुए वे लिखते हैं कि उत्तम वस्त्रों आदि से पूजा करना पूजा कहलाती है और पुष्पमाला आदि से की जाने वाली पूजा सत्कार कहलाती है। पूजा और सत्कार की व्याख्या कुछ भी हो, पर यह अवश्य है कि दोनों ही द्रव्यस्तव हैं। द्रव्यस्तव भगवान् को सम्मत है- परमात्मा ने साधु के लिए द्रव्यस्तव का निषेध नहीं किया है। यदि निषेध किया होता, तो शास्त्रों में द्रव्यस्तव की कहीं भी चर्चा नहीं होती, जबकि आगमों में कई स्थलों में द्रव्यस्तव की चर्चा की गई है। ज्ञातधर्म-कथा में द्रौपदी के द्वारा जिन-प्रतिमाओं के पूजन का उल्लेख है। वह प्रवर राजकन्या द्रौपदी ऊषाकाल में पौ फटने पर सहस्ररश्मि दिनकर तेज से जाज्वल्यमान सूर्य के कुछ ऊपर आ जाने पर जहाँ स्नान-घर था, वहाँ आई। आकर स्नान-घर में प्रवेश किया। प्रवेश कर स्नान, बलिकर्म और कौतुक-मंगल रूप 'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि-6/28 से 29 - पृ. . - 109 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि - 6/30 - पृ. - 109 ज्ञाताधर्म-कथांग - म. महावीर - अनु. आ. महाप्रज्ञ - अध्याय-16 - सूत्र - 158 - पृ. - 330 174 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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