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रही थी कि यह ब्राह्मण उसे मिला। उसने पकवान ब्राह्मण को दिया। ब्राह्मण ने पकवान को गाड़ी के आकार का देखकर खाने से इनकार कर दिया। फलतः, मुनि की बात उसे सत्य प्रतीत हुई। इस प्रकार कभी-कभी असम्भव भी सम्भव हो जाता है। प्रत्याख्यान विषयरहित नहीं है - प्रस्तुत विषय का विवेचन आचार्य हरिभद्र प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की उनचासवीं गाथा में करते हुए कहते हैं कि प्रत्याख्यान के विषय में यह भी चिन्तन है कि प्रत्याख्यान अविद्यमान का नहीं होता है, अपितु विद्यमान का ही होता है, क्योंकि वस्तुओं के नाम भिन्न-भिन्न भी होते हैं, देश, काल के अनुसार भिन्न-भिन्न देश में, भिन्न-भिन्न काल में सभी वस्तुओं का उपभोग होता ही है।
जिस प्रकार गाड़ी के उदाहरण में पकवान गाड़ी नहीं होने पर भी गाड़ी के आकार का होने के कारण गाड़ी ही कहा जाता है, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न वस्तुओं में भिन्न-भिन्न आकार होता है और उन वस्तुओं का भोग सम्भव है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अमुक वस्तु खाद्य नहीं हो सकती है, खाद्य या अखाद्य- सभी वस्तुओं का भोग सम्भव है, अतः अनुपलब्ध या अखाद्य वस्तुओं का भी प्रत्याख्यान तो आवश्यक है। विरागी जीव का प्रत्याख्यान सफल - किसी भी विषय का प्रत्याख्यान करने वाला मन से विरत होता है, तो उसके हर प्रत्याख्यान सफल होते हैं, अतः विरत होकर ही प्रत्याख्यान करना चाहिए, अर्थात् भव-विरह की इच्छा से सर्व प्रकार के आहार आदि से मन से निवृत्त हो जाना चाहिए, क्योंकि मन की निवृत्ति ही वास्तव में प्रत्याख्यान है और ये ही प्रत्याख्यान सफल होते हैं। यही बात आचार्य हरिभद्र ने प्रत्याख्यानविधि-पंचाशक की पचासवीं गाथा में उल्लेखित की है
___ भवविरह की इच्छा वाले जीव का विद्यमान या अविद्यमान सर्व वस्तु सम्बन्धी प्रत्याख्यान सफल है, क्योंकि मोक्षाभिलाषा और विरति के भाव से जिसका प्रत्याख्यान किया है, उसका चारित्र-मोहादि कर्म का क्षय होता है।
1 पंचाशक-प्रकरण-आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/49 - पृ. - 98
1 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 5/50 - पृ.
- 99
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