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________________ जिस प्रकार कुआँ खोदते समय अनेक जीवों की हिंसा होती है, किन्तु बाद में कुएँ के जल से अनेक लोकोपकारी कार्य होते हैं, इसलिए कुआँ खोदने की प्रवृत्ति लाभकारी होती है, उसी प्रकार जिनपूजा में हिंसा होने पर भी पूजा से होने वाले शुभभावों से अंन्ततः लाभ ही होता है। गृहस्थों की जिनपूजा की निर्दोषता का कारण – गृहस्थ आरम्भी होता है। वह क्या पाप नहीं करता है ? सामान्यतः, अपनी सुख-सुविधा के लिए शरीर पोषण के लिए, पैसों की प्राप्ति के लिए पाप प्रवृत्ति करता ही रहता है, अर्थात् कर्म-बन्धन करता ही रहता है, तो इस पाप-निवृत्ति के लिए जिनपूजा ही श्रेयस्कर है, कि जिसके माध्यम से गृहस्थ आरम्भ से विवृत होता है। इस प्रकार, पूजा तो पापनिवृत्तिरूप है। यही बात आचार्य हरिभद्र पूजाविधि-पंचाशक की तिरालीसवीं गाथा में स्पष्ट करते हैं यहाँ यह विचार करना चाहिए, कि गृहस्थों के लिए जिनूपजा निर्दोष है, क्योंकि गृहस्थ कृषि आदि असदारम्भ (अशुभकार्य) में प्रवृत्ति करते हैं, जबकि जिनपूजा से वे उस असदारम्भ से निवृत्त होते हैं, अतः जिनपूजा निवृत्तिरूप फल वाली है। यह निवृत्ति कालान्तर और वर्तमान की दृष्टि से दो प्रकार की होती है1. जिनपूजा से उत्पन्न भावविशुद्धि से कालान्तर में चारित्रमोहनीय-कर्म का क्षयोपशम होने से चारित्र की प्राप्ति होती है, जिससे असदारम्भ से सर्वथा निवृत्ति हो जाती है। 2. जिनपूजा जितने समय तक होती है, उतने समय तक असद् आरम्भ नहीं होता है, और शुभभाव उत्पन्न होते हैं, इसलिए जिनपूजा में दूषण लगाने वालों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि जिनपूजा से असदारम्भ की निवृत्ति होती है। प्रश्न उपस्थित होता है कि पूजा करने पर प्रभु को क्या लाभ है ? ___ पूजा करने पर प्रभु (पूज्य) को लाभ न भी हो, तो कम से कम पूजक को तो लाभ होगा ही। पूज्य की पूजा पूज्य के लाभ के लिए नहीं होती है। पूजक अपने लाभ के लिए ही पूज्य की पूजा करता है। विद्यार्थी के अध्ययन से विद्यागुरु को लाभ । पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि - 4/43 - पृ. - 72 132 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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