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________________ इसी प्रकार, न्याय-नीति से रहित अशुद्ध जीविका के अर्जन से भी अधिक दोष लगते हैं, क्योंकि द्रव्यशुद्धि के अभाव की अपेक्षा भावशुद्धि के अभाव में अधिक दोष लगते हैं। ( इसमें अज्ञानता, निन्दा और अबोधि के अतिरिक्त राजदण्ड इत्यादि दोश अधिक लगते हैं), इसलिए द्रव्य और भाव- इन दोनों प्रकारों की शुद्धि से युक्त होकर जिनपूजा करनी चाहिए। पूजा-सामग्री द्वार – पूजा करने वाला स्वद्रव्य से पूजन की सामग्री लेकर परमात्मा के द्वार जाए। पूजन की सामग्री यथा- चन्दन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत नैवेद्य, फलव विभिन्न प्रकार के रस, वस्त्र आदि सभी उत्तम से उत्तम लेकर जाएँ, क्योंकि जितनी उत्तम वस्तु होगी, उतनी ही भावना में शुद्धि होगी, तथा उत्तम सामग्री देखकर दूसरों का भावोल्लास भी बढ़ेगा ? वर्तमान में कई लोग चाहे जैसी पूजासामग्री परमात्मा के सम्मुख चढ़ा देते और उन्हें कोई कहता है, तो वे तर्क करने लगते हैं कि क्या हो गया, चढ़ा दिया तो ? क्या भगवान उसे खाएंगे ? वह तो पुजारी को जाएगा, परन्तु ध्यान रहे, हम पुजारी को देने के भाव से नहीं चढ़ाते। कौन ले जाएगा ? कौन खाएगा ? ये सारे प्रश्न मस्तिष्क में नहीं होना चाहिए। मन तो केवल उत्तम द्रव्यसामग्री से उत्तम भावों की श्रेणी में चढ़ने के लिए होना चाहिए, क्योंकि सारी द्रव्यपूजाभावपूजा में स्थिर होने हेतु सेतु का कार्य करता कई लोग खूब सस्ती चॉकलेट आदि चढ़ा देते हैं, मानो भगवान् बच्चे है। उन्हें चॉकलेट, मखाना आदि चढ़ाकर राजी कर दें। ऐसे लोग मेहमान को खुश करने के लिए तो रसगुल्ले, पेड़े, लड्डु आदि बढ़िया-बढ़िया मिठाई परोसते हैं और भगवान् के सामने चॉकलेट, सस्ती गोलियां, दाग लगे हुए सस्ते फल आदि चढ़ा देते हैं। ये फल सड़े हुए हैं, घर के लोग तो खाएंगे नहीं, अतः चढ़ा दो- इस प्रकार के विचार से चढ़ाने पर पूजा कभी फलदायक नहीं होती है, क्योंकि यह कहावत प्रसिद्ध है कि जैसा बीज, वैसा फल। बबूल का बीज बोया है, तो आम का फल नहीं मिलेगा तथा आम का बीज बोया है, तो उसमें बबूल का फल नहीं लगेगा, जो बोया है, वही प्राप्त होगा। उत्तम द्रव्य उत्तम भाव से चढ़ाते हैं, तो उत्तम द्रव्य की प्राप्ति होगी। 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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