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________________ परमार्थ से सुखवृद्धि की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान पुरुष को ऐसा प्रयत्न करना चाहिए, जिससे स्व–पर कल्याण की परम्परा का विच्छेद न हो, अपितु उसकी वृद्धि हो। यदि आजीविका के अर्जन के समय पूजा की जाएगी, तो कल्याण की परम्परा का विच्छेद हो जाएगा। ___ आजीविका के व्यवच्छिन्न होन पर गृहस्थों की सभी क्रियाएँ अवरुद्ध हो जाती हैं। सर्वथा निरपेक्ष व्यक्ति के लिए तो सर्वविरतिरूप संयम ही योग्य है, क्योंकि सर्वविरतिरूप संयम के बिना निःस्पृह बनना सम्भव नहीं है। गृहस्थ के लिए सर्वथा निःस्पृह बनकर रहना असम्भव है, अतः उसे आजीविका का अर्जन करना होगा। आजीविका का व्यवच्छेद हो जाने पर तो गृहस्थ की समस्त क्रियाएँ अस्त-व्यस्त हो जाती हैं, इसलिए आजीविका सम्बन्धी क्रियाओं में व्यवधान न पड़ता हो- ऐसे समय पर पूजा का अभिग्रह करना चाहिए। नित्य जिन-पूजा किए बिना मैं खाना नहीं खाऊंगा, पानी नहीं पीऊंगा- इस प्रकार के अभिग्रहों में ऐसा कोई भी अभिग्रह (नियम) लेना चाहिए जो आजीविका का बाधक न हो। गृहस्थों के लिए जिनपूजा का वही काल कहा गया है, जो आजीविका अर्जन में बाधक नहीं हो, साथ ही अभिग्रह लेने से प्रतिदिन पूजा करने का परिणाम (भाव) भंग नहीं होता है। अभंग परिणाम (भाव) अभंग पुण्य-बन्ध का हेतु है। शुद्धि-विचार – परमात्मा की पूजा के लिए पवित्रता का होना आवश्यक है और इस पवित्रता की अपेक्षा केवल शरीर से ही नहीं है, मन से भी है, क्योंकि बाह्यशुद्धि आन्तरिक शुद्धि का हेतु बनती है। हम व्यवहार में भी देखते हैं कि यदि कोई आपके घर पर आए, वह गन्दे कपड़ों में है, उसने स्नान नहीं किया है, तो आप उससे घृणा करेंगे, मन में कहेंगे कि कैसा गन्दा व्यक्ति है, स्नान भी नहीं कर सकता है। कई लोग ऐसे भी होते हैं कि मुँह पर ही कह देते हैं कि इतने गन्दे हो, 'छीं', कैसे रहते हो ? साफ रहा करो। मन्दिर, उपाश्रय आदि में भी लोग टोक देते हैं और ऐसे व्यक्ति से घृणा भी करते हैं, उसके पास में बैठना भी पसन्द नहीं करते हैं। ऐसी स्थिति में मन तटस्थ नहीं रह सकता है। सामने वाले के प्रति मन में क्रोध, घृणा आदि उत्पन्न हो ही जाएगी, तो मन 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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