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________________ किन्तु क्षायोपशमिक -भाव होने के कारण वह शुभाचरण उसके अध्यवसाय (आत्मपरिणाम) का वर्द्धक ही होता है, इसलिए शुभभावरूप मोक्ष के हेतुओं की वृद्धि करने वाला होने के कारण चैत्यवन्दन करना चाहिए। उपर्युक्त धर्म व्यापार में विशेष रूप से निहित बुद्धि वाले (प्रतिभाशाली) व्यक्तियों द्वारा सामान्य रूप से अनुकूल इस भाववर्द्धक क्रिया को श्रेष्ठ बुद्धि के धारक विद्वानों को अच्छी तरह से धारण करना चाहिए। चैत्यवन्दन का लक्षण – आचार्य हरिभद्र चैत्यवन्दनविधि-पंचाशक की छब्बीसवीं गाथा में' जिज्ञासा को चैत्यवन्दन का लक्षण बताते हुए चर्चा करते हैं, कि भाद्धभावों से की गयी वन्दना में जिज्ञासा (जानने की इच्छा) भी एक मुख्य लक्षण है, जो निर्वाण चाहने वालों को निर्वाण के सम्यग्ज्ञानादि हेतुओं के प्रति होती है, अर्थात् साधक वेला, विधान और आराधना आदि के साथ-साथ मोक्ष के लिए अपेक्षित सम्यग्ज्ञान आदि के हेतुओं के प्रति भी जिज्ञासु होता है, यह बात सिद्ध है। जिज्ञासा को मोक्ष का हेतु बताया गया है, क्योंकि ज्ञाता के द्वारा अपने साध्य को जानने की जो इच्छा है, वही जिज्ञासा है। ऐसी जिज्ञासा का समर्थन करते हुए आचार्य हरिभद्रसूरि चैत्यवन्दनविधि-पंचाशक की सत्ताइसवी गाथा में जिज्ञासा मोक्ष का कारण है, इसका प्रतिपादन करते हुए लिखते हैं जिज्ञासा मोक्ष की प्राप्ति में निमित्त है, क्योंकि पतंजलि के योगशास्त्र आदि आध्यात्मिक-ग्रन्थों में प्रायः धृति, श्रद्धा, सुखा, विविदिषा (जिज्ञासा) आदि को मोक्ष के कारणभूत एवं सम्यग्ज्ञानादि की उत्पत्ति के हेतु के रूप में माना गया है। शुद्धवन्दना की प्राप्ति के नियम - शुद्धवन्दना किन जीवों में होती है, इसका विवेचन आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक की अठ्ठाइसवीं एवं उन्नीसवीं गाथाओं में किया है"यह शुद्धवन्दना यथाप्रवृत्तिकरण से ऊपर के तथा मिथ्या आग्रह से रहित जीवों में ही 1 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि- 3/26 - पृ. 46 पंचाशक-प्रकरण-आचार्य हरिभद्रसूरि-3/27 - पृ. 46 3 पंचाशक-प्रकरण- आचार्य हरिभद्रसूरि-3/28,29 - पृ. 46,47 102 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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