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मध्यम चैत्यवन्दन
वन्दना है।
उत्कृष्ट चैत्यवन्दन –सम्पूर्ण विधिपूर्वक, अर्थात् पांच दण्डकसूत्रों, तीन स्तुतियों और प्रणिधानपाठ से जो वन्दना की जाती है, वह उत्कृष्ट वन्दना है।
प्रवचन-सारोद्धार के अनुसार भी चैत्यवन्दन की विधि तीन प्रकार की हैजघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ।'
जघन्य चैत्यवन्दन - नमो अरिहंताणं- ऐसा बोलना जघन्य चैत्यवन्दन है।
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मध्यम चैत्यवन्दन – चैत्यवन्दन दण्डक तथा स्तुतियुगल बोलना मध्यम चैत्यवन्दन है, अर्थात् पांच णमुत्थुणं, चार थुई के द्वारा जो वन्दना की जाती है, वह मध्यम चैत्यवन्दन है ।
पांच दण्डकसूत्रों और तीन स्तुतियों द्वारा वन्दन करना मध्यम
उत्कृष्ट चैत्यवन्दन - विधिपूर्वक पांच शक्रस्तवरूप उत्कृष्ट चैत्यवन्दन है, अर्थात् पांच णमुत्थुणं, आठ थुई (स्तवन) एवं जयवीयरायसूत्रपूर्वक वन्दना करना उत्कृष्ट चैत्यवन्दन है ।
की विधि तीन प्रकार की बताई है। 2
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चैत्यवदन भाष्य में भी प्रवचन - सारोद्धार के अनुरूप ही चैत्यवन्दन
चैत्यवन्दन-कुलक में भी इसी प्रकार की विधि है, किन्तु वह हरिभद्र के पंचाशक से क्वचित् भिन्न है । हरिभद्र ने तीन स्तुतियों का ही उल्लेख किया है। हालांकि उस समय में त्रिस्तुतिक गच्छ प्रचलित नहीं था, पर परमात्मा के समक्ष देव-देवी स्तुति बोलने या न बोलने के सम्बन्ध में वाद-विवाद अवश्य प्रारम्भ हो गया था। अतः, कईं आचार्य चार स्तुति का कथन करते थे एवं कई आचार्य तीन स्तुति का । फिर भी यह सिद्ध है कि तीन स्तुति बोलने पर भी उन्हें तीन स्तुति वाले अथवा त्रिस्तुतिगच्छ का सम्बोधन नहीं दिया गया था। इसी प्रकार, चार स्तुति करने वाले को
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1 प्रवचन - सारोद्धार - आचार्य नेमिचन्द- द्वार- 1/92 - पृ. 24
2 चैत्यवन्दनभाष्य - देवेन्द्रसूरि - गाथा - 23
3 चैत्यवन्दनकुलक
श्री जिनकुशलसूरि - पृ. 96
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