SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ र्णादि के आधार पर चार प्रकार का बतलाया है- वर्णवान्, गंधवान्, रसवान् और स्पर्शवान्। 27 क्षुधावेदनीय कर्म के उदय से आहार के पुद्गलों को ग्रहण करने की अभिलाषा आहार - संज्ञा है । प्रत्येक जीव आहार को ग्रहण करता है, किन्तु आहार को ग्रहण करने की तीव्रता एवं मंदता सभी जीवों में अलग-अलग प्रकार से पाई जाती है। इसी तीव्रता एवं मंदता को ध्यान में रखते हुए आहार संज्ञा के चार विकल्प (भंग) कहे गये हैं 2. 3. 1. आहार करते भी हैं और आहार- संज्ञा भी है 2. आहार करते हैं, परन्तु आहार - संज्ञा नहीं है 3. आहार नहीं करते हैं, परन्तु आहार - संज्ञा हैं 4. आहार भी नहीं करते हैं और आहार - संज्ञा भी नही है क्षेत्र से काल से मुक्त जीव 1. • द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से आहार - संज्ञा की विवेचना इस प्रकार है द्रव्य से नारक, तिर्यंच एवं देवगति के सभी जीवों तथा आहार - संज्ञा का परित्याग करने वाले साधक मनुष्य के अतिरिक्त सभी मनुष्यों में द्रव्य से आहार - संज्ञा है । - 27 चउगईण आहार रूवं (1) नेरइयाण चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. इंगालोव 2. मुम्मुरोव 3. सीतले (2) तिरिक्खजोणियाणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. कंकोव 2. विलोवमे Jain Education International (3) मणुस्साणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. असणे 2. पाणे 3. खाइमे (4) देवाणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. वण्णमंते 2. गंधम — तीनों लोकों में आहार - संज्ञा पायी जाती है सभी जीवों की अपेक्षा से आहार - संज्ञा अनादि अनंत है । सामान्य संसारी-प्राणी सयोगी - केवली विग्रहगति के जीव — 3. रसमंते 3. पाणमंसोवये 4. पुत्तमं सोव 4. साइमे 4. फासमं For Personal & Private Use Only 52 4. हिमसीतले www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy