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________________ ____53 4. भाव से - मोहनीय सहवेदनीय-कर्म के उदय से आहार-संज्ञा उत्पन्न होती है। • तीव्र, मध्य एवं मंदता के अनुसार आहार-संज्ञा को तीन प्रकार से विभाजित कर सकते हैं - 1. तीव्र – तन्दुल मत्स्य 2. मध्यम – मनुष्य देव 3. मंद – साधक जीव • तीव्र आहार-संज्ञा वाला जीव – 1. द्रव्य से - वह भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार नहीं करता है, मात्र आहार-संज्ञा ___ की पूर्ति के लिए खाता चला जाता है। 2. क्षेत्र से – उसे क्षेत्र का भी भान नहीं रहता, मंदिर और अन्य पवित्र स्थानों पर भी खा लेता है। 3. काल से - आहार-संज्ञा अति तीव्र होने के कारण वह रात और दिन के समय का ध्यान नहीं रखता है। 4. भाव से - अज्ञान-भाव एवं तीव्र क्षुधावेदनीय-कर्म के उदय से यह संज्ञा उत्पन्न होती है। ------000------ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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