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4.
भाव से - मोहनीय सहवेदनीय-कर्म के उदय से आहार-संज्ञा उत्पन्न होती है।
• तीव्र, मध्य एवं मंदता के अनुसार आहार-संज्ञा को तीन प्रकार से विभाजित कर
सकते हैं -
1. तीव्र – तन्दुल मत्स्य
2. मध्यम – मनुष्य देव 3. मंद – साधक जीव
• तीव्र आहार-संज्ञा वाला जीव –
1. द्रव्य से - वह भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार नहीं करता है, मात्र आहार-संज्ञा ___ की पूर्ति के लिए खाता चला जाता है। 2. क्षेत्र से – उसे क्षेत्र का भी भान नहीं रहता, मंदिर और अन्य पवित्र स्थानों
पर भी खा लेता है।
3. काल से - आहार-संज्ञा अति तीव्र होने के कारण वह रात और दिन के
समय का ध्यान नहीं रखता है।
4. भाव से - अज्ञान-भाव एवं तीव्र क्षुधावेदनीय-कर्म के उदय से यह संज्ञा
उत्पन्न होती है।
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