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________________ हमारा शरीर हर समय कुछ न कुछ कार्य करता है। जिस समय हम सोते हैं, उस समय भी शरीर के आंतरिक-अवयव अपना काम करते रहते हैं। काम करने से शरीर क्षीण होता है, प्रतिक्षण शरीर के कोश टूटते रहते हैं। एक कदम चलने से, एक शब्द बोलने से और तनिक भी सोचने-विचारने या चिन्ता करने से, यही नहीं, प्रत्युत, श्वास लेने तक से भी शरीर में कुछ न कुछ हृास अवश्य होता है। यह भी देखा गया है कि कई दिनों तक उपवास करने से शरीर क्षीण और दुर्बल हो जाता है, क्योंकि उन दिनों में वह कवलाहार का त्याग करता है। आहार न मिलने के कारण, अकाल के समय सैकड़ों मनुष्य सूखकर काँटा हो जाते हैं। आहार न पचा सकने के कारण रोगी मनुष्य पोषण के अभाव में दिन-प्रतिदिन कमजोर होता जाता है, उसका वजन घटने लगता है। इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि आहार करते रहने पर परिश्रमी मनुष्य का भी शरीर क्षीण नहीं होता और आहार न करने, अथवा आहार न पचने पर बिना परिश्रम किए भी शारीरिक भार घट जाता है, अतएव स्पष्ट है कि हमारे शरीर में जो हृास होता है, उसकी पूर्ति करनेवाला आहार ग्रहण तथा गृहीत आहार का पाचन ही है। आहार से ही शरीर के टूटे हुए कोशों के स्थान पर नये कोश बनते हैं और उनकी मरम्मत होती रहती है। शरीर-विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि इस परिवर्तन से प्रायः सात वर्ष में हमारा पूरा शरीर बिल्कुल बदल जाता है। आहार शारीरिक-हास की पूर्ति करने के अतिरिक्त प्राणी की एक विशेष आयु तक शारीरिक-वृद्धि भी करता है। नवजात शिशु के भार, लम्बाई इत्यादि का युवा पुरुष के भार और उसकी लम्बाई इत्यादि से तुलना करने पर यह बात स्वतः ही स्पष्ट हो जाती है। बालक के शरीर में आहार से हृास कम और नए-नए कोश अधिक बनते हैं, इसलिए दिन-प्रतिदिन वह बढ़ता जाता है, परंतु युवा एवं प्रौढ़ पुरुषों में अधिक श्रम करने के कारण हृास अधिक होता है, आहार से उनकी पूर्ति मात्र ही होती है। अधिक आहार वह पचा नहीं सकता, जो हृास की पूर्ति करने के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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