SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतिरिक्त-शारीरिक वृद्धि भी हो सके। प्रौढ़ पुरुषों की पाचन शक्ति क्षीण होने के कारण उनका शरीर दिन-प्रतिदिन क्षीण होने लगता है। शरीर में ताप भी भोजन से उत्पन्न होता है। जब तक हम जीते हैं, हमारा शरीर सदैव गरम रहता है और हर समय थोड़ी-बहुत गर्मी शरीर से बाहर भी निकलती रहती है। चाहे हम शीत-प्रधान देश में रहें या उष्णता प्रधान देश में, चाहें ग्रीष्म ऋतु हो अथवा शीत-ऋतु, परन्तु हमारे शारीरिक-ताप में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता। हमारे शरीर में सदैव ही एक प्रकार की दहन-क्रिया होती रहती है। आहार इस दहन-क्रिया में ईंधन का कार्य करता है, जिससे गर्मी उत्पन्न होकर हमारा शरीर उष्ण रहता है, इस प्रकार, आंतरिक दहन-क्रिया से जो ताप उत्पन्न होता है, उसका ही दूसरा रूप शक्ति है, जो हमें कार्य करने में समर्थ बनाती है। इस प्रकार शरीर में जाकर आहार चार कार्य करता है - 1. शारीरिक-हास की पूर्ति, 2. शारीरिक-ताप की वृद्धि, 3. शरीर की वृद्धि 4. शक्ति या बल की उत्पत्ति आहार ये चार कार्य करता है और इन्हीं कार्यों के लिए आहार की आवश्यकता होती है। 2. शरीर-संरक्षण के लिए - शरीर-संरक्षण के लिए आहार अति आवश्यक है। शरीर में होने वाले परिवर्तन, ताकत, शक्ति, पुष्टता एवं बल का द्योतक आहार है। आहार के कारण ही मनुष्य का शरीर सब परिस्थितियों में स्वयं का संरक्षण कर सकता है। जो व्यक्ति स्वस्थ है, संयमित है, इसका मूल कारण एक यह भी है कि वह आहार के प्रति सजग है। यही कारण है कि शरीर के संरक्षण के लिए आहार को विद्वानों ने विभिन्न दृष्टियों से विवेचित किया है - 1. वैज्ञानिक दृष्टि से 2. धार्मिक अथवा नैतिक-दृष्टि से 3. दार्शनिक-दृष्टि से 4. देश और काल की दृष्टि से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy