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________________ 530 आत्मानुभव करना, या निज शुद्धात्मा में स्थिति करना, निर्विचिकित्सा नामक गुण है।118 विचिकित्सा पर विजय का लक्ष्य यह है कि इस शरीर के प्रति ममत्व कम हो, दैहिक-सुन्दरता के प्रति आकर्षण कम हो और मनुष्य अपनी आत्मिक-सुन्दरता का दर्शन करे। कस्तूरी काली है, तो क्या ? गुणवान है, हजारों रुपयों की तोला भर आती है, शकर सफेद है, किन्तु कस्तूरी जैसी गुणवान नहीं है, इसलिए पत्थरों से तुलती है। वस्तुतः, बाहरी रूप का कोई मूल्य नहीं है, मूल्य आत्मा की सुन्दरता का है। अष्टावक्र ऋषि119 का शरीर आठ स्थानों से वक्र था, किन्तु आत्मज्ञान में वे बहुत श्रेष्ठ थे, इसलिए बड़े-बड़े ऋषि भी उन्हें प्रणाम करते थे। 'चक्रवर्ती सनत्कुमार' अपने सौन्दर्य का इतना विकृत रूप देखकर दहल उठे। शरीर और वैभव की नश्वरता को जानकर उन्होंने प्रव्रज्या ले ली। उनके शरीर में रोग उत्पन्न होकर क्रमशः बढ़ते जा रहे थे, परंतु उन्होने न तो किसी प्रकार का उपचार किया और न शारीरिक-पीड़ा से व्याकुल बने। उन्हें ऐसी आत्मानुभूति हो रही थी कि शरीर है ही नहीं। भयंकर बीमारी में भी वे औषधि का प्रयोग नहीं करते थे। वे कहते थे -रोग शरीर का है, आत्मा का नहीं, परंतु देवों के आग्रह से उन्होंने अपने थूक से शरीर के एक भाग का रोग मिटाकर दिखा दिया और एक दिन अपनी साधना में सफल होकर मुक्ति को प्राप्त हुए। ___गुणग्राही दृष्टि जहाँ होगी, वहाँ विचिकित्सा नहीं हो सकती, क्योंकि जगत् के जितने भी ज्ञेय पदार्थ हैं, वे सभी गुणों से युक्त हैं। यदि दृष्टि गुणग्राही हो, तो वस्तुओं के प्रति कैसी घृणा और कैसी विचिकित्सा ? जैसे-श्रीकृष्ण महाराजा जब अपनी सेना के साथ गुजर रहे थे, तो रास्ते में उन्होंने एक सड़ी हुई कुतिया को 118 निश्चयेन पुनस्तस्यैव व्यवहारनिर्विचिकित्सा गुणस्य बलेन समस्तद्वेषादिविकल्परूपकल्लोलमाला त्यागेन निर्मलात्मानुभूतिलक्षणे निजशुद्धात्मनि व्यवस्थानं निर्विचिकित्सा गुण इति। -द्रव्यसंग्रह टीका- 41/173/2 119 न जन्म, न मृत्यु -श्री चन्द्रप्रभ, पृ. 10 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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