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देखा। जुगुप्सा के कारण सभी सैनिकों ने नाक पर हाथ रख लिए, परंतु श्रीकृष्ण बोले 'कुतिया की दंतपंक्ति कितनी सुन्दर है।'
जब दृष्टि सम्यक् हो जाती है, तब सभी वस्तुएं गुणों से युक्त दिखाई देती हैं। समयसार ग्रंथ में आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं –सम्यकदृष्टि जीव की दृष्टि सम्यक् होती है। जो जीव सभी वस्तु धर्मों में जुगुप्सा, ग्लानि नहीं करता, वह जीव विचिकित्सा-दोष से रहित सम्यक्दृष्टि को प्राप्त होता है।120
पाश्चात्य–चिन्तकों ने भी कहा है कि सुन्दरता देखने वालों की आँखों में होती है। यदि दृष्टि सम्यक् है, तो सभी वस्तुएं सम्यक् और सुन्दर दिखाई देती हैं।
आधुनिक मनोवैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि घृणा को सकारात्मक सोच के माध्यम से दूर किया जा सकता है, क्योंकि नकारात्मक सोच दृष्टि को धूमिल बनाता है। जहाँ सकारात्मक सोच है, वहाँ न तो विकर्षण (मैकडूगल की चौदह मूल प्रवृत्तियों में से एक) होगा और न ही घृणा-संवेग उत्पन्न होगा।
उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि विचिकित्सा (जुगुप्सा) पर विजय अशुचिभावना, ध्यान, ममत्त्ववृत्ति के त्याग और सकारात्मक सोच के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
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120 समयसार, गाथा 231 121 "Beauty lies in the eyes of beholder.
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