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हैं, अतः शान्त और सुखी जीवन के लिए मानसिक तनावों एवं मनोवेगों से मुक्ति पाना आवश्यक है। धर्म व्यक्ति के तनावों को मुक्त करने में सहायक होता है। धर्म व्यक्ति के जीवन में समत्व की स्थापना करता है और कषायों को प्रशम करता है, इससे व्यक्ति तनावों से मुक्त हो जाता है। कितना भी क्रोधी व्यक्ति परमात्मा के मन्दिर में प्रवेश करता है, तो उसका क्रोध शान्त हो जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म व्यक्ति के तनावों को मुक्त करता है ।
4. धर्म व्यक्ति को सद्गुणों से युक्त बनाता है
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धर्म मानव के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सम्यक् दिशा प्रदान कर भौतिक और आध्यात्मिक - विजय प्राप्त कराता है। धर्म में सच्ची आस्था रखने वाला व्यक्ति धर्म के प्रति लगाए गए आक्षेपों से विचलित नहीं होता है। धार्मिक आस्था की अनिवार्यता पर बल देते हुए महात्मा गाँधी ने यहाँ तक कह डाला है - "धर्म-भावना के बिना कोई भी बड़ा कार्य नहीं हुआ है और न कभी भविष्य में होगा। 129 मनुष्य की समस्त उपलब्धियाँ धर्म के सहयोग से परिपूर्ण होती हैं और एक उज्ज्वल भविष्य का संदेश देती हैं। वस्तुतः, धर्म मानवमात्र का कल्याणकर्ता है। यदि धर्म को मानव-जीवन से पृथक् कर दिया जाए, तो मानव बर्बर हो जाएगा। उसके जीवन का अर्थ और मूल्य समाप्त हो जाएगा और उसके अस्तित्व की उपादेयता नष्ट हो जाएगी। धर्म व्यक्ति को सद्गुणों से युक्त बनाता है । यदि धर्म के प्रति श्रद्धा और विश्वास सही और नैष्टिक है, तो सत्य ईश्वर के दर्शन होंगे। मनुष्य को धर्म के प्रति पूर्ण आस्थावान् होना उसकी उन्नति और विकास के लिए अत्यन्त महत्त्व रखता है।
5. धर्म शान्ति की स्थापना करता है -
धर्म मानव-मानव से प्रेम और विश्व - बन्धुत्व की भावना को जाग्रत करता है तथा एकता और शान्ति का संचार करता है । आधुनिक युग भौतिक विकास का युग है, भौतिकता और आधुनिक वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा के कारण व्यक्ति अशान्त बना हुआ है। व्यक्ति की इच्छा, आकांक्षा, तृष्णा, आधुनिक नवीन साधनों के प्रति मूर्च्छा,
129 नीति : धर्मः दर्शन (गांधीजी) सम्पा. रामनाथ 'सुमन', पृ. 143
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