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________________ हमारा परमश्रेय हो सकता है और इस रूप में वही धर्म कहा जाता है। धर्म का लक्षण यह भी बताया गया है - जो आत्मा का परिशुद्ध स्वरूप है और जो आदि, मध्य और अन्त सभी में कल्याणकारक है, वही धर्म है। वैशेषिकसूत्र में धर्म का लक्षण बताते हुए कहा गया है - जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस् की सिद्धि होती है, वह धर्म है। 1 सिक्ख धर्म के प्रवर्त्तक गुरूनानक ने 'हृदय की पवित्रता को ही धर्म माना है। 2 ईसाईधर्म क्षमा और दया को धर्म मानता है । ईसा ने सूली पर चढ़ते हुए भी अपने शत्रुओं के प्रति क्षमाशीलता को कायम रखा। उनकी अन्तिम प्रार्थना थी - "भगवान! इनको क्षमा करना, बेचारे नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं । 43 धर्म की इन अनेक व्याख्याओं के उल्लेख का प्रयोजन यही है कि हम धर्म के व्यापक स्वरूप को, जो विभिन्न धर्मदर्शनों में बताया गया है, उसको हृदयंगम कर सकें । ये व्याख्याएँ स्पष्ट करती हैं कि जीवन को उच्च, पवित्र और दिव्य बनाने वाले जो भी विधि-विधान या क्रियाकलाप हैं, वे सभी धर्म के अन्तर्गत हैं । 1 भारतीय - परम्परा की यह विशेषता है कि उसमें धर्म की किसी एकांगी परिभाषा पर ही बल नहीं दिया गया, वरन् धर्म के विविध पक्षों को उभारने का प्रयास किया गया है। वे कहते हैं कि वेद एवं स्मृति की आज्ञाओं का परिपालन, सदाचार और आत्मवत् व्यवहार धर्म का लक्षण है। वस्तुतः, पाश्चात्य परम्परा में इन विविध परिभाषाओं का आग्रह देखा जाता है। जैन - परम्परा में कार्त्तिकेयानुप्रेक्षा और दशवैकालिकसूत्र में प्रदर्शित धर्म की परिभाषाएं धर्म के सभी तथ्यों को स्पष्ट करती हैं। दशवैकालिक44 में धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा है। मंगल शब्द का अर्थ हैपाप या बुराइयों का नाश और सुख एवं कल्याण की प्राप्ति । तात्पर्य यह है कि जो 40 41 'वैशेषिकसूत्र, उद्धृत नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण, पृ. 6 42 धर्म-दर्शन, प्रो. रामेश्वर प्रसाद शर्मा, पृ. 414 43 "Father! forgive them for they know not what they do" - Jesus 'दशवैकालिकसूत्र - 1/1 वही, पृ. 2669 44 456 Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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