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________________ 453 आचरण बताया है। आचार को स्पष्ट करते हुए मनु ने यह भी बताया है कि आचरण का वास्तविक अर्थ रागद्वेष से रहित व्यवहार है। वे कहते हैं कि रागद्वेष से रहित सज्जन विद्वानों द्वारा जो आचरण किया जाता है और जिसे हमारी अन्तरात्मा ठीक समझती है, वही आचरण धर्म है। 3. जो दुर्गति और दुःख से बचाए वह धर्म -. . गीतार्थ ज्ञानियों ने धर्म की परिभाषा करते हुए कहा है –'दुर्गतो प्रपतन्तमात्मानं धारयतीति धर्मः–अर्थात्, दुर्गति में गिरते हुए जीवों को जिससे शुभ स्थान में धारण किया जाता है, उसे धर्म कहते हैं। प्रवचनसार की तात्पर्याख्यावृत्ति के कर्ता के अनुसार - धर्म वह है, जो मिथ्यात्व, राग आदि से हमेशा संसरण कर रहे भवसंसार से प्राणियों को उपर उठाता है और विकाररहित शुद्ध चैतन्यभाव में उन्हें धर देता है।" इस दुनिया में जो भी जीव आए, वर्तमान में हैं और भविष्य में आएंगे, वे सब इस दुनिया में किसी न किसी प्रकार से दुःखी रहते रहे हैं और रहेंगे। जीवों को इन सांसारिक-दुःखों से छुटकारा पाने के लिए जो इष्ट स्थान तक पहुंचा दे, धर दे, वह धर्म है। हेमचन्द्राचार्य ने कहा है – “दुर्गति में गिरते हुए जीवों को धारण रक्षण करने के कारण ही उसे धर्म कहते हैं। वह संयम आदि दस प्रकार का है, सर्वज्ञों द्वारा 20 मनुस्मृति, - 2/108 । वही, 2/1 22 दशवैकालिकसूत्र सूत्र व्याख्या में 1/1 2 मिथ्यात्वरागादिसंसरणरूपेण भावसंसारे प्राणिनमुघृत्य निर्विकारशुद्धचैतन्ये धरतीति धर्मः। – प्रवचनसार –तात्पर्यवृत्ति, 7/9 24 क) इष्टे स्थाने धत्ते इति धर्मः। - सर्वार्थसिद्धि, 9/2 ख) धर्मो नीचैः पदादुच्चैः पदे धरति धार्मिकम् तत्राजवज्जवो नीचैः पदमुच्चैस्तदव्यय।। - पंचाध्यायी, उत्तरार्द्ध, 715 ग) महापुराण, 2/37 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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