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________________ 452 1. धर्म नियमों या आज्ञाओं का पालन है - जैन-परम्परा में धर्म आज्ञापालन के रूप में विवेचित है। आचारांगसूत्र में महावीर ने स्पष्ट कहा है कि मेरी आज्ञाओं के पालन में धर्म है।12 मीमांसादर्शन में धर्म का लक्षण आदेश या आज्ञा माना गया है। उसके अनुसार, वेदों की आज्ञा का पालन ही धर्म है। जैन-परम्परा में लौकिक-नियमों या सामाजिक-मर्यादाओं को भी धर्म कहा गया है। स्थानांगसूत्र में ग्रामधर्म, नगरधर्म, संघधर्म आदि के सन्दर्भ में धर्म को सामाजिक विधि-विधानों के पालन के रूप में ही देखा गया है। 14 उपर्युक्त परिभाषाओं की चर्चा डॉ. सागरमल जैन ने अपने शोध-प्रबंध में भी की है। 15 इस्लाम धर्म का अर्थ आज्ञापालन और आत्म-समर्पण करना है। इस्लाम धर्म की यह सबसे बड़ी शिक्षा (परिभाषा) है कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करें तथा उसके सामने सभी प्रकार से आत्मसमर्पण करें।16 2. धर्म चारित्र का परिचायक है - . . जैन-परम्परा में धर्म की दूसरी परिभाषा चारित्र के रूप में दी गई है। स्थानांगसूत्र की टीका में आचार्य अभयदेव ने धर्म का लक्षण चरित्र माना है।" प्रवचनसार में आचार्य कुन्दकुन्द ने भी चारित्र को ही धर्म का लक्षण चरित्र माना है। 18 आचारांगनियुक्ति के अनुसार - शास्त्र एवं प्रवचन का सार आचरण है। वैदिक-परम्परा में मनु ने आचार को परमधर्म कहकर धर्म का लक्षण चारित्र या आणाए मामगं धम्मं – आचारांगसूत्र 1/6/2/185 13 मीमांसादर्शन, 1/1/2 " दसविहे धम्मे पण्णत्ते, तं जहा - गामधम्मे, नयरधम्मे, रट्ठधम्मे .... | – स्थानांगसूत्र 1/101/760 15 जैन, बौद्ध और गीता के आचारणदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - भाग-1, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 9 16 विश्वधर्मदर्शन की समस्याएँ, डॉ. बी.एन.सिंह, पृ. 228 ।' स्थानांगसूत्र, टीका, 4/3/320 18 प्रवचनसार, 1/7 1" आचारांगनियुक्ति 16/17 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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