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पाश्चात्य-विचारकों द्वारा धर्म की परिभाषाएँ इस प्रकार दी गई हैं' -
हीगेल (Hegal) - "Religion is the knowledge possessed by the finite mind of its nature as absolute mind." ई.बी. टेलर (E.B. Taylor) - "Religion is the belief in spiritual beings." मैक्समूलर (Maxemuller) - "Religion is a feeling of absolute dependence." कांट' (Kant) - " Religion is the recognition of all duties as divine command ments.” मैथ्यु अरनाड (Metthew Arnold) - "Religion is morality touched with emotion." गैलवे (Galloway) - "Religion is a man's faith in a power beyond himself whereby he seeks to satisfy. Emotional needs and gain stability of life and which he expresses in act of worship and service." ब्राइटमैन' (Edgar s. Brightman) - "Religion, then is a total experience which includes this concern this devotion and this expression." मार्टिन्यू (Martineau) - "Religion is a belief in and wprship of an everlasting God that is divine mind and will rulling the universe and holding moral relations with mankind."
प्रो. फ्लिन्ट {Prof. Flint}ने धर्म की इस प्रकार की परिभाषा दी है, जो धर्म के सभी आवश्यक पहलुओं पर प्रकाश डालती है। हीगेल, ई.बी.टेलर, मैक्समूलर ने जो धर्म की परिभाषाएं दी हैं, उनमें धर्म के एकमात्र ज्ञानात्मक-पक्ष को ही स्पष्ट किया गया है। कांट ने अपनी परिभाषा में ज्ञान के साथ-साथ क्रियात्मक पहलू पर भी ध्यान दिया है, लेकिन भावनात्मक पहलू की उपेक्षा कर दी है, लेकिन दार्शनिक गैलवे, ब्राइटमैन, माटिन्यू और प्रो. फ्लिन्ट ने धर्म की जो परिभाषाएं दी हैं, उनमें विश्वास (श्रद्धा), विचार (ज्ञान) और आचार तीनों का समावेश कर लिया गया है। इसलिए यह परिभाषा निर्दोष एवं संतोषप्रद है। पाश्चात्य–परम्परा में धर्म को विविध रूप से परिभाषित किया गया है, साथ ही भारतीय परम्परा में धर्म को अनेक रूपों में परिभाषित किया गया है। उनमें से कुछ प्रमुख दृष्टिकोण इस प्रकार हैं -
"2-9 धर्मदर्शन - प्रो. रामेश्वर प्रसाद शर्मा, पृ. 26-28
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