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हैं। 70 अतः मानव अपने आप को यदि निग्रह करे तभी वह आनन्द को प्राप्त कर
सकता है।
सुख और आनन्द में अंतर
1. वस्तुतः सुख व्यक्ति को भौतिक - पदार्थो से प्राप्त होता है, पर आनन्द व्यक्ति की आत्मानुभूति है। जब चित्त शान्त, प्रशान्त और प्रसन्न होता है, तो आनन्द का झरना हृदय से स्फुटित होता है ।
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2. सुख भौतिक है और आनन्द आध्यात्मिक । भौतिक सुख बाह्य वस्तुओं के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, अच्छी गाड़ी व लाड़ी से व्यक्ति बाह्य रूप से सुखी हो सकता है, परन्तु वास्तविक सुख आत्मिक आनन्द है जो कि मात्र अनुभव का विषय है ।
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3. सुख सहजता से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे कोई भूख के कारण, प्यास के कारण, अथवा धन के अभाव से दुःखी है तो भोजन, पानी और धन की उपलब्धता उसे सुखी बना देगी, लेकिन आनन्द की प्राप्ति आकांक्षा की समाप्ति पर ही होती है।
4. जो नहीं चाहने पर भी आ जाता है, वह दुःख है, जो चाहते हुए भी नहीं रहता, वह सुख है, जो सदाकाल बना रहता है, वह आनन्द है
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5. सुख संग्रह में है, आनन्द त्याग़ में है । .
6. सुख दुःख को प्रशम (दबा ) कर देता है। आनन्द दुःख का क्षय (खत्म ) कर देता है।
7. विषय - सुख प्रतिक्षण क्षीण होकर नीरसता में परिणत होता है। इसके साथ अभाव, अशान्ति, पराधीनता, चिन्ता, जड़ता, भय आदि अगणित दुःख लगे रहते
70 यं च कामसुखं लोके, यंचिदं दिवियं सुखं
तण्हक्खयसुखस्तेते, कलं नाग्घन्ति सोलसिं
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वही, 2/2
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