SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 357 • जुआरी झूठी सौगन्ध खाकर, झूठी कौड़ी और पासे बनाकर धनवानों से रुपए ऐंठ लेते हैं। महाभारत में दुर्योधन के मामा शकुनि ने मायावी पासों से पाण्डवों को चौपड़ में हराया था और द्रोपदी के साथ ही हस्तिनापुर सहित सब कुछ जीत लिया था। दम्पति, माता-पिता, सगे भाई, मित्र, स्वजन, सेठ, नौकर तथा अन्य लोग परस्पर एक दूसरे को ठगने में नहीं चूकते। धनलोलुप पुरुष निर्लज्ज होकर खुशामद करने वाले चोर से तो हमेशा सावधान रहता है, किन्तु प्रमादी को ठग लेता है। कारीगर और चांडाल अपने पुरखों से प्रचलित व्यापार-धन्धे से अपनी आजीविका चलाते हैं, मगर छल से शपथ खाकर अच्छे-अच्छे सज्जनों को ठग लेते हैं। क्रूर व्यन्तरदेव, अर्थात् भूत, प्रेत, पिशाच, राक्षस आदि मनुष्यों और पशुओं को प्रमादी जानकर प्रायः अनेक प्रकार से हैरान करते हैं। • ठगने में चतुर शिकारी मायावी-जाल बिछाकर थोड़े से मांस और दाने का लोभ देकर प्राणियों को पकड़ते हैं। माया के बहुतेरे रंग और ढंग होते हैं। समवायांगसूत्र में माया के सत्रह पर्यायवाची बताए हैं | ये हैं – माया, उपधि, निकृति, वलय, गहन, न्यवम, कल्क, कुरूक, दम्भ, कूट, जिम्ह, किल्विषिता, अनाचरणता, गूहनता, वंचनता, परिकुंचनता और सातियोग। 20 महाभारत कथा से - 21 माया उ वही नियडो वलए ......। - समवायांगसूत्र, 52/1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy