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भगवतीसूत्र में माया के पन्द्रह समानार्थक नाम दिए गए हैं। 22 'समवायांगसूत्र' में दिए सत्रह पर्यायों में से दंभ एवं कूट को 'भगवतीसूत्र' में नहीं लिया गया है । 23 इन पर्यायों का अर्थ निम्नोक्त है
1. माया
2. उपधि ·
3. निकृति
4. वलय
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कपटाचार, माया का भाव उत्पन्न करने वाला कर्म 1
ठगने के उद्देश्य से व्यक्ति के निकट जाना ।
आदर-सत्कार से विश्वास जमाकर विश्वासघात करना ।
वक्रतापूर्वक वचन और व्यवहार में वलय के समान वक्रता हो ।
5. गहन ठगने के लिए अत्यन्त गूढ़ भाषण करना ।
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6. न्यवम नीचता का आश्रय लेकर ठगना ।
7. कल्क हिंसादि पाप - भावों से ठगना ।
8. कुरुक
निन्दित व्यवहार करना !
9. दम्भ
शक्ति के अभाव में स्वयं को शक्तिमान् मानना ।
10. कूट
असत्य को सत्य बताना ।
11. जिम्ह - ठगी के अभिप्राय से कुटिलता का आलम्बन ।
12. किल्विष माया प्रेरित होकर किल्विषी जैसी निम्न प्रवृत्ति करना ।
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13. अनाचरणता ठगने के लिए विविध क्रियाएं करना । भगवतीसूत्र में अनाचरण के स्थान पर आदरणता शब्द का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ अनिच्छित कार्य भी अपनाना है।
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14. गूहनता - मुखौटा लगाकर ठगना ।
15. वंचना
छल-प्रपंच करना ।
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22 भगवतीसूत्र, श. 12, उ.5, सू 4
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से 8, एवं 9 से 13 भगवतीसूत्र, श. 12, उ. 5, सू. 4 के हिन्दी अनुवाद से लिए गए हैं।
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