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________________ 341 बात भी समझ में नहीं आती। प्रजापाल राजा ने अहंकार के कारण अपनी पुत्री मैनासुन्दरी का विवाह कोढ़ी पुरूष के साथ कर दिया। मंत्री, रानी और सभाजनों -सभी ने मना किया, पर अहंकार के कारण उन्हें कोई समझा न सका। श्रीकृष्ण दुर्योधन जैसे अभिमानी को समझा नहीं सके थे। रावण को भी उसके भाई विभीषण ने और रानी मन्दोदरी ने बहुत समझाया था कि वह सीता को वापस लौटा दे, परन्तु रावण ने किसी की बात नहीं सुनी। खंदक ऋषि ने काचरे के छिलके निकलवाने पर अहंकार किया था, इस कारण उन्हें दूसरे भव में स्वयं की चमड़ी उतरवाना पड़ी। रामायण, महाभारत, आगमशास्त्र, इतिहास आदि के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मानवृत्ति एवं अहंकार मानव विकास में सदा बाधक बनकर ही रहा है। मान के दुष्परिणाम निम्न हैं - 1. मान से विनय-गुण नष्ट होता है - दशवैकालिकसूत्र में कहा है –'माणो विणय नासणो, अर्थात् मान विनय-गुण का नाश करता है और विनय नष्ट होने पर व्यक्ति धर्म करने के लिए योग्य नहीं रहता है, क्योंकि धर्मरूपी महल में प्रवेश करने का द्वार विनय है। 'विनय धम्मो मूलो-7 धर्म का मूल विनय कहा गया है। कषाय-इन्द्रिय विनयनं विनयः - अर्थात् जिसके द्वारा कषाय एवं इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखा जाए, वह विनय कहलाता है। जो साधक गर्व, क्रोध, माया और प्रमादवश गुरुदेव के समीप विनय नहीं सीखता, तो उसके अहंकारादि दुर्गुण उसके ज्ञानादि वैभव के विनाश का कारण बन जाते हैं; 45 श्रीपालमयणा चरित्र 46 दशवैकालिकसूत्र 8/38 47 उत्तराध्ययनसूत्र 48 उत्तराध्ययनसूत्रटीका -पत्र 16 (शान्त्याचार्य) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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