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________________ 251 3. हिरण्य - चांदी के सिक्के, आभूषण आदि । 4. स्वर्ण – स्वर्ण और स्वर्ण के आभूषण आदि । 5. धन – हीरे, पन्ने, माणक, मोती, जवाहरात आदि। 6. धान्य – गेहूँ, चावल, मूंग, मोठ आदि । 7. द्विपद - नौकर-नौकरानी, दास-दासी आदि। बहुत से लोग तोता, मैना, कबूतर, मोर आदि पक्षी भी पाल लेते हैं। दो पैर वाले होने से इनकी गणना भी परिग्रह के इसी भेद में होती है। 8. चतुष्पद - गाय, भैंस, आदि चार पैर वाले पशु। 9. कुप्य – वस्त्र, पलंग और अन्य विविध प्रकार की धातुओं के सामान आदि । जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के अनुसार दस भेद इस प्रकार हैं- क्षेत्र, वस्तु, धन, धान्य, संचय (तृण काष्ठ आदि का) मित्रज्ञातिसंयोग (परिवार), यान (वाहन), शयनासन (पलंग पीठ आदि), दास-दासी और कुप्य। कहीं-कहीं द्विपद-चतुष्पद को एक गिनकर दास-दासी को पृथक् किया है और कहीं-कहीं पर धातु -चांदी, तांबा, पीतल, लोहा आदि को पृथक्-पृथक् भी गिन लिया गया है। यह स्पष्ट है कि परिग्रह के कई आयाम हैं। यह ‘जड़' या 'चेतन' हो सकता है। जीव का परिग्रह चेतन-परिग्रह है, जबकि अजीव का परिग्रह जड़-परिग्रह है। परिग्रह ‘रूपी' या 'अरूपी' हो सकता है। दृश्य वस्तुओं का संचय रूपी-परिग्रह है, जबकि अदृश्य वस्तुओं (जैसे -विचार, भाव आदि) का परिग्रहण अरूपी-परिग्रह है। इसी प्रकार, परिग्रह ‘स्थूल या अणु' हो सकता है। सूक्ष्म वस्तुओं का परिग्रह अणु-परिग्रह है तथा स्थूल वस्तुओं का परिग्रह स्थूल-परिग्रह कहलाता है, किन्तु परिग्रह के भेदों की सर्वाधिक एवं महत्त्वपूर्ण विद्या 'बाह्य' और 'आभ्यंतर' के भेद में देखी जा सकती है। जब मन में मूर्छा होती है, तो उस मूर्छा से, चाहे जड़-चेतन, 6 देखें, डॉ. कमल जैन, द कन्सैप्ट ऑफ पंचशील (उपर्युक्त), पृ. 224-225 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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