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________________ 235 गया है कि -पिता के द्वारा संचित लक्ष्मी निश्चय ही पुत्र के लिए भगिनी के तुल्य होती है और दूसरों की लक्ष्मी पर-स्त्री के समान है, दोनों का भोग वर्जित है, अतः व्यक्ति को अपनी जैविक-आवश्यकता के लिए जितना धन आवश्यक है उतना उसे संचय करने का अधिकार है, परन्तु यदि वह भविष्य की आवश्यकता की पूर्ति के लिए संचय करता है, तो वह दूसरों के अधिकारों का हनन करता है। __ वर्तमान काल में केवल इच्छापूर्ति के लिए ही संचय नहीं किया जाता, वरन् विलासिता, सुविधा और सुख-प्राप्ति के लिए संचय किया जा रहा है। आज के विज्ञापन, पत्र-पत्रिकाएं ऐसी इच्छा जाग्रत करते हैं जो अनावश्यक को भी आवश्यक बना देती है। उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि इनके बिना तो हमारा जीवन चल ही नही सकता। विज्ञापन आदि संचयवृत्ति को जाग्रत करते हैं और इससे परिग्रह-संज्ञा की वृत्ति बढ़ती ही चली जाती है, अतः हमें आवश्यकता को सम्यक् रूप से समझना होगा। 2. लोभमोहनीय कर्म के उदय से - जो कर्म जीव को मोहग्रस्त करता है, विवेक भ्रष्ट करता है उसे मोहनीयकर्म कहते हैं। कर्मग्रन्थ में मोहनीयकर्म के दो भेद किए गए हैं - 1. दर्शन–मोहनीय और 2. चारित्र-मोहनीय। प्रस्तुत संदर्भ में, चारित्र-मोहनीयकर्म के उदय से व्रतों और महाव्रतों के ग्रहण एवं पालन में बाधा उपस्थित होती है। इसके भी दो भेद हैं - 1. कषाय-चारित्रमोहनीय, 2. नोकषाय-चारित्रमोहनीय। कषाय-चारित्रमोहनीय, जिससे दुःखों की प्राप्ति होती है उसे कषाय कहते हैं।14 कष्-संसार, जन्ममरण, रागद्वेष और आय अर्थात् लाभ। जिसके कारण भव (संसार) का विस्तार होता है, उसे कषाय कहते हैं। कषाय चार प्रकार के हैं - 1.क्रोध, 2. मान, 3. माया और 4. लोभ । मोहनीयकर्म के उदय से चित्त में उत्पन्न होनेवाली तृष्णा या लालसा लोभ 13 सोलस कसाय नव नोकसाय, दविहं चरित्त मोहणीयं। अण-अपच्चक्खाणा, पच्चक्खाणा य संजलणा ।। - प्रथमकर्मग्रंथ, गाथा 17 1" कम्मं कस भवो वा कसमाओ सिं जओ कसाया ता ....। - विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 2978 15 अभिधानराजेन्द्रकोष, खण्ड-3, पृ. 395 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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