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________________ से विजय पाई जा सकती है। कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए आयंबिल का तप एक रामबाण उपाय है । आयंबिल के भोजन से रसना पर ता विजय मिलती ही है साथ में काम पर विजय भी प्राप्त की जा सकती है, अतः साधक को आयंबिल, या प्रतिदिन एक विगई का त्याग करना चाहिए। साधक को अपने भावब्रह्मचर्य के पालन के लिए विवेकपूर्ण तप-धर्म का आचरण अवश्य करना चाहिए । 18. कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग की साधना के द्वारा भी भटकते हुए मन को नियंत्रित किया जा सकता है। मन को केन्द्रित करने के लिए कायोत्सर्ग श्रेष्ठ साधना है । काया के उत्सर्ग के द्वारा काया के ममत्व का त्याग करना होता है। जहाँ काया की ममता नहीं रहेगी, वहाँ कामवासना का अस्तित्व भी कैसे टिक पाएगा । भगवान् महावीर प्रभु भी अपने छद्मस्थ - काल में अधिकांश समय कायोत्सर्ग की साधना में ही बिताते थे। खड़े-खड़े लंबे समय तक कायोत्सर्ग करने से मन का भटकाव रुक जाता है और साधक आत्मोन्नति के शिखर पर चढ़ जाता है । 19. अशुचि - भावना 193 मानव-शरीर के भीतर भयंकर अशुचि है । मल-मूत्र, हाड़-मांस से यह देह भरा हुआ है। ऊपर रही गौरवर्णीय चमड़ी का आकर्षण परिणाम में तो अत्यन्त ही खतरनाक है। स्त्री-देह बाहर से कितना ही सुंदर क्यों न हो, भीतर से तो अत्यन्त ही वीभत्स है। बाहर की चमड़ी उतर जाए, तो उसकी ओर एक क्षण का भी आकर्षण नहीं रहेगा। अब्रह्म के पाप से बचने के लिए हमेशा अशुचि - भावना से अपनी आत्मा का भावित करना चाहिए । 20. विजातीय - सजातीय स्पर्श - त्याग 193 योगशास्त्र Jain Education International से मन को भावित करें - ब्रह्मचर्य - पालन के इच्छुक व्यक्ति को विजातीय और सजातीय के अंगोपांग के स्पर्श का भी त्याग करना चाहिए। इस स्पर्श के पाप में हस्त मैथुन का पाप जीवन 223 4/72 - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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