SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में फलता-फूलता है और व्यक्ति स्वप्नदोष आदि का शिकार बनकर सत्त्वहीन और शक्तिहीन बन जाता है । 21. परलोक का विचार करें अब्रह्म के सेवन से आत्मा को परलोक में भयंकर कटु विपाक भुगतने पड़ते हैं। नरक में परमाधामी देवता धग धगायमान लोहे की पुतलियों का आलिंगन करने हेतु तीव्र दबाव डालते हैं। जीते-जी चमड़ी उतार दी जाती है। यहाँ कामभोग में क्षणभर का सुख है, किन्तु परिणामस्वरुप नरक में लाखों-करोड़ों-अरबों वर्षों तक भयंकर यातनाएं भुगतना पड़ती हैं। 22. भव-आलोचना - 224 पाप के पश्चाताप में आत्मा के ऊर्ध्वकरण की अपूर्व शक्ति रही हुई है। मोह व अज्ञानता के कारण जो भूलें हो चुकी हैं, उनको हृदय से स्वीकार करना चाहिए और भविष्य में उन भूलों का पुनरावर्त्तन न हो जाय, इसके लिए अत्यंत ही सावधान रहना चाहिए । उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ब्रह्मचर्य की साधना और वासना पर जय हम मन की एकाग्रता और व्रत की दृढ़ संकल्पता के माध्यम से कर सकते हैं, क्योंकि आगम - साहित्य में काम - भोग के त्याग को ब्रह्मचर्य माना है । काम और भोग ये दोनों पर्यायवाची नहीं हैं। स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों के विषयों को 'काम' कहा गया है तथा घ्राण, चक्षु और कर्ण - इन्द्रियों के विषयों को 'भग' माना गया है । काम और भोग में पांचों इन्द्रियों के विषय का परित्याग ही ब्रह्मचर्य है। सम्यक् रुप से इन्द्रियों को वश में कर ब्रह्मचर्य की साधना की जा सकती है। विश्व के सभी चिन्तकों ने व्यभिचार, विषयवासना, विलासिता की भर्त्सना की है। बाइबिल में भी यह स्वर मुखरित हुआ है । उसी प्रकार, मुस्लिम - धर्म में भी विलासिता को निन्दनीय माना गया है। अनियन्त्रित कामवासना मानव के संस्कारों को विकृत बनाती है। आज चलचित्रों के दृश्य व्यक्ति की विषयवासना को उद्दीप्त करते हैं । उत्तराध्ययनसूत्र का Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy