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5. कुड्यान्तर शब्द श्रवणादिवर्जन - दीवार आदि की आड़ से स्त्रियों के शब्द, गीत आदि न सुने। 6. पूर्वभोग स्मरण-वर्जन - पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करे।
7. प्रणीत भोजन त्याग - विकारोत्पादक गरिष्ठ भोजन न करे।
8. अतिमात्रा भोजन त्याग – रुखा-सूखा भोजन भी अधिक मात्रा में न किया जाए। 9. विभूषाविवर्जन – शरीर की सजावट न करे।
ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए वेद, उपनिषद् और बौद्ध-साहित्य में ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए कुछ नियम और उपनियमों का उल्लेख अवश्य हुआ है, उदाहरणार्थ - स्मरण, क्रीड़ा, अवलोकन आदि का निषेध किया गया है,164 परन्तु जिस तरह से जैन-साहित्य में इसका क्रमबद्ध उल्लेख प्राप्त होता है, वैसा वर्णन अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। यह एक ज्वलन्त सत्य है कि काम पर विजय प्राप्त करना सरल नहीं है। उसके लिए निशीथचूर्णि में एक मनोवैज्ञानिक रुपक प्रस्तुत किया है – एक बाला, जो सारे दिन निठल्ली बैठी रहती थी और अपने रूप को सजाती-संवारती रहती थी, उसे तीव्र वासनाएं सताने लगी, तब समझदार वृद्धा ने उसको सम्पूर्ण घर का भार सौंप दिया, जिससे वह उस काम में इतनी तल्लीन हो गई कि कामवासना को भूल गई। वह रात्रि में इतनी थकी रहती थी कि लेटते ही उसे गहरी नींद आ जाती थी। वैसे ही, श्रमण-श्रमणियों को भी दिन-रात स्वाध्याय और ध्यान में लगे रहना चाहिए जिससे काम-वासनाएं उबुद्ध ही न हों। काम-वासनाओं पर विजय प्राप्त करने का यह सरलतम उपाय है।165
वस्तुतः, ब्रह्मचर्य कामवासना के निरसन के लिए मेरुदण्ड के समान है, इसके अभाव में साधक आध्यात्मिक-साधना नहीं कर सकता, इसलिए श्रमणों के लिए नैष्ठिक-ब्रह्मचर्य-महाव्रत के पालन करने और श्रमणोपासक (गृहस्थों) के लिए
14 दक्षस्मृति - 7/32 165 निशीथभाष्य, चूर्णि, गाथा-574
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