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किन्तु उनमें से परिपक्व अवस्था को प्राप्त करने वाले कम ही होते हैं,145 अतः शेष सभी जीवाणु समाप्त हो जाते हैं, अर्थात् मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इस तरह, अब्रह्मचर्य के द्वारा बहुत बड़ी हिंसा होती है। श्री हेमचन्द्राचार्यरचित योगशास्त्र में कहा है – 'योनिरूपी यंत्र में अनेक सूक्ष्मतर जन्तु उत्पन्न होते हैं। मैथुन-सेवन करने से वे जन्तु मर जाते हैं, इसलिए मैथुन-सेवन का त्याग करना चाहिए। 146 इस तरह अब्रह्मचर्य के द्वारा बहुत बड़ी हिंसा होती है। संभवतः, इसी दृष्टि से ब्रह्मचर्य की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए एक आचार्य ने कल्पना की है कि तराजू के एक पलड़े में चारों वेद रखे जाएं और दूसरे पलड़े में ब्रह्मचर्य व्रत रखा जाए, तो ब्रह्मचर्य का पलड़ा भारी हो जाता है।147 अब्रह्म-सेवन में हिंसा तो मुख्य रुप से होती ही है, किन्तु अन्य पाप भी होते हैं। आचार्य पूज्यपाद148 लिखते हैं कि अहिंसा आदि गुण जिसके पालन से सुरक्षित रहते हैं, या बढ़ते हैं, वह ब्रह्म है और जिसके होने से अहिंसा आदि गुण सुरक्षित नहीं रहते, वह अब्रह्म है। अब्रह्म के सेवन से प्राणी चर और अचर -सभी की हिंसा करता है। वह झूठ बोलता है, वह बिना दी हुई वस्तु भी ग्रहण करता है। इस प्रकार, ब्रह्मचर्य के व्रत-भंग होने पर अन्य सभी व्रत भंग हो जाते हैं। जैसे पर्वत से गिरने पर वस्तु के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, वैसी ही स्थिति व्रतों की होती है।149
महात्मा गांधी ने भी कहा है150 –“पाँच मुख्य व्रत मेरी आध्यात्मिक-साधना के पाँच स्तम्भ हैं। ब्रह्मचर्य उनमें से एक है। पाँचों अविभक्त और सम्बद्ध हैं। वे एकदूसरे से सम्बन्धित और एक-दूसरे पर आधारित हैं। यदि उनमें से एक का भंग होता है, तो सबका भंग हो जाता है।"
145 भगवई, वृ.- 2/87 146 योनियंत्रसमुत्पन्ना सुसूक्ष्मा जन्तुराशयः
पीडयमान विपद्यन्ते यत्र तन्मैथुनं त्यजेत् ।। – योगशास्त्र - 2/79 147 एकतश्चतुरो वेदा ब्रह्मचर्य च एकतः – अणु से पूर्ण की यात्रा पृ. 331 148 तत्त्वार्थराजवार्त्तिक – 9, 6-23 149 प्रश्नव्याकरणसूत्र - 2/4 150 महात्मा गांधी – दि लास्ट फेस, पृ. 585
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