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________________ 200 कामवासना का दमन और निरसन - ब्रह्मचर्य की भावना और नौ वाड़ के माध्यम से - ___ ब्रह्मचर्य की साधना वासनाओं के निरसन की साधना है। मानव एकान्त-शान्त स्थान पर बैठकर उग्र-से-उग्र तप की साधना कर सकता है, पर जिस समय उसके अतमानस में वासना का भयंकर तूफान उठता है, उस समय वह अपने आपको नियंत्रित नहीं रख पाता, अतः कामवासनाओं के निरसन और ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए सतत जागरुकता अपेक्षित है। साधक को कामवासनाओं के निरसन के लिए अपना जीवन पूर्ण सादगीमय बनाना होता है। कामोत्तेजक मोहपूर्ण वातावरण से अपने-आपको मुक्त करना होता है, अतः आचारांगसूत्र 151 , समवायांग 152 , प्रश्नव्याकरणसूत्र 153, आचारांगचूर्णि154, आवश्यकचूर्णि 155, तत्त्वार्थसूत्र की टीकाओं, सर्वार्थसिद्धि 156 एवं राजवार्त्तिक 157 में ब्रह्मचर्य की पाँच भावनाओं का उल्लेख है। यद्यपि इन सबमें क्रम में या नामों में कुछ अन्तर है, परन्तु भाव सभी का समान है। आचारांगसूत्र के अनुसार पाँच भावनाएँ इस प्रकार हैं - 1. निग्रंथ श्रमण पुनः-पुनः स्त्रियों की कामजनक कथा न करे, क्योंकि उनकी कथा करने से सच्चारित्र और ब्रह्मचर्य का भंग और केवली-प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होने की आशंका रहती है। 2. स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अंगों का कामरागपूर्वक सामान्य या विशेष रूप से अवलोकन न करे, उससे भी ब्रह्मचर्य का भंग होता है। 151 आचारांगसूत्र – 2, 786-787 . 152 समवायांग, सम. 25 153 प्रश्नव्याकरणसूत्र 154 आचारांगचूर्णि, मूल पाठ टिप्पण, पृ. 280 155 आवश्यकचूर्णि, प्रतिक्रमण अध्ययन, पृ. 143-147 156 तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि-7-7 157 तत्त्वार्थराजवार्त्तिक 7-7 पृ. 536 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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