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________________ टैगोर बैठे-बैठे पत्र लिख रहे थे। कोई हत्यारा हाथ में छुरा लेकर उनके कक्ष में घुसा... पाँवों की आहट सुन उन्होंने आँखें उठाई देखा और पत्र लिखने में लीन हो गए। हत्यारा बोला "मैं तुम्हें मारने के लिए आया हूँ।" टैगोर के चेहरे पर किसी प्रकार का विकार नहीं उभरा। वे शान्त भाव से बोले - "कुछ आवश्यक पत्र लिखने हैं। उन्हें लिख लूं, उसके बाद तुम अपना काम कर लेना ।" मृत्यु की साक्षात् उपस्थिति में भी कोई व्यक्ति इतना निर्विकार रह सकता है, उसने यह पहली बार देखा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ । पर जो कुछ था, वह सत्य था। वह क्षमा मांगकर लौट गया। जिसको मृत्यु का भय नहीं, वही निश्चय में अभय है । निर्भयता एक महान दैवीक गुण है। जो मनुष्य को सिंह पुरुष बना देता है । भगवान् महावीर, बुद्ध, दयानन्द, लूथर, लिंकन और महात्मा गांधी निर्भयता के जीते-जागते उदाहरण थे। इस प्रकार, प्राणियों में भय की सत्ता को स्वीकार करते हुए हमने यह बताने का प्रयास किया है कि साधक को अपनी साधना के माध्यम से अभय का विकास करना होगा। जैनदर्शन का कहना है कि यदि हम अभय चाहते हैं, तो हमें दूसरों को भय से मुक्त करना होगा । अभय की चाह स्वाभाविक है, किन्तु वह तभी फलित हो सकती है, जब हम दूसरों को निर्भय बनाएं और यही वर्त्तमान युग में विश्व - शान्ति का एकमात्र सूत्र हो सकता है। Jain Education International 144 -000- For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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