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________________ 103 16.अधिकार छिन जाने का भय, 17. स्वास्थ्य बिगड़ जाने का भय, 18. अधीनस्थों से हार जाने का भय, आदि ।, यह बात स्पष्ट है कि भय ही हमारी जीवनशैली को प्रभावित करता है। हमारे हर कार्य में भय छुपा रहता है, जैसे - 1. जीने में मरने का भय। 2. आशा में निराशा का भय । 3. प्रयत्न करने में असफलता का भय । 4. किसी को प्रेम करने पर बदले में प्रेम न पाने का भय 5. अपनी भावना और अपने विचार अपने लोगों से कहने पर उनके चुरा लिए जाने का भय। 6. लोगों से मिलने पर रिश्ते जुड़ जाने का भय । 7. ज्यादा हंसने से बेवकूफ समझे जाने का भय । 8. ज्यादा रोने पर जज्बाती समझे जाने का भय, आदि। यद्यपि भयसंज्ञा (भय की संचेतना) सभी में होती है, फिर भी जिंदगी में जो व्यक्ति खतरा नहीं उठाते सम्भवतः वे जिंदगी में दुःख-दर्द से बच भी जाएं, किन्तु वे जीवन में बदलाव लाने, आगे बढ़ने या सम्यक् जीवन जीने की कला को सीख नहीं पाते हैं। अंततः, भयभीत बना रहना, जीवन में खतरे का सामना न करना ही जीवन की विकास यात्रा का सबसे बड़ा खतरा बन जाता है। ____ भय के कारण को स्पष्ट करते हुए दार्शनिक जे. कृष्णमूर्ति ने कहा है - "सोच ही मूल कारण है भय का। भूतकाल की कोई दुःखद घटना भय पैदा कर देती है कि वह दोबारा घटित न हो जाए। भूतकाल में यदि सुख भोगा है, तो आदमी को भय लगने लगता है कि भविष्य में कहीं वह सुख को खो तो न देगा। 23 भोगे रोगमयं सुखे क्षयभयं वित्तेऽग्नि भूभृद्भयम। दास्ये स्वामिभयं गुणे खलभयं वंशे कुयोषिद्भयम।। माने ग्लानिभयं जये रिपुभयं, काये कृतांताद् भयम्। सर्व नाम भयं भवेऽत्र भविनां वैराग्यमेवाऽभयम्।। - उपदेशमाला, गाथा 20 के विवेचन में। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003971
Book TitleJain Darshan ki Sangna ki Avdharna ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPramuditashreeji
Publication Year2011
Total Pages609
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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