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स्थिति में, वह भय भय न होकर मात्र साहस के रूप में जीवन में सफलता पाने की प्रेरणा देता है। जैनदर्शन में उसे यतना या सजगता (अप्रमादि) कहा गया है।
उदाहरणस्वरूप हम कह सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया की टीम क्रिकेट बहुत अच्छा खेलती है, वह विश्वकप विजेता है। यदि भारतीय टीम में यह भय व्याप्त हो गया कि 'हम हार जाएंगे' तो फिर वह भयाक्रान्त होने के कारण मैदान पर लड़खड़ा जाएगी और यदि बिना भय के प्रारंभ से ही सजगता के साथ खेले, तो जीत भी जाएगी। मैं नहीं हारूं, -ऐसा भय जरूरी भी है, नहीं तो खेलने में लापरवाही होगी। इसे ही आगम में 'जियभयाणं' कहा गया है।
भूतकाल का कोई अनुभय भय को पैदा करता है। भय के कई रूप हैं 22_
1. मौत का भय, 2. शरीर में रोग का भय, 3. पत्नी के दुराचार का भय, 4. पुत्री के शील की रक्षा का भय, 5. सन्तान द्वारा फिजूलखर्ची का भय, 6. अपकीर्ति का भय, 7. दुश्मन का भय, 8. सरकार का भय, टेक्स का भय, 9. रूपयों के लेने-देने में भय, 10.विश्वासघात का भय, 11.विरोधी पक्ष का भय, 12. बहिष्कार का भय, 13.असफलता का भय, 14. गरीबी या दरिद्रता का भय, 15. साथ छूट जाने का भय,
भावनास्रोत, – 2 पृ. 171
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